समाज और साहित्य | Samaj Aur Sahitya

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Samaj Aur Sahitya by अंचल - Anchal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख नैतिक और आाचारिक मूल्यों पर ज़ोर दिया गया। राजनैतिक और वैधा- निक माँगों पर उतना जोर नहीं दिया गया और सोवियट रूस के इस दान सामाजिक और राजनैतिक प्रयोग ने पेटी बुर्दुआ वर्ग के नेताओं पर कोई प्रभात्र नहीं डाला । कैसिस्ट देशों की सरकारी सोशलिस्ट या नेश- नैल सोशलिस्ट पार्टी ने शुरू से ही किसानों और मज दूरों के आन्दोलन से अपने को दूर रकता । पूँ जीपति वर्ग के श्रार्थिक और नैतिक बल के दारे चलने वाली वैहाँ की प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने अमिकों के , श्रान्दोलनों और स्वत्वरक्षण चेष्टाओं का सदेव विरोध किया है। हमारे | देश में भी बढ़त से नेताओं का कहना है कि किसानों को चाहिये वे ॥ जमींद्धरों के शोपण को स्त्रीकार करें और प्रतिरोध में श्रावाज्‌ न उठायें। यदि ईश्वर दे और ऐसा वें मानते हैं तो जमोदारों का द्वृदय-परचर्तन | होगा और किसानों के दिन लौटेंगे। कदने का तात्पर्य यद ६ कि ऐसे स्वराज्य का मूल्य क्या जिसमें समाज के भीतर जमींदारी और ू नीवाद, मद्वाजनी या साहूकारी का शोबण या वेयक्तिक मुनाफ़े और पूंजी के आधार पर श्रेणी विभाजन और विग्रह चलता रट । ऊपर यद्‌ कदा गया है सरि प्रत्येक जगद्द मनुष्य आर्थिक और सामाजिक, नैतिक और मानतिक गुलामियों में जकड़ा है और केवल रूस को छोड़कर कह्दी ये दासता की हथकड़ियाँ नहीं हूटों । परन्तु उसकी वर्ग चेतना श्रौ. वर्गसंबर्ष की प्रतिद्दिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ती जाती है | वद्द और उसकी परिस्थितियाँ विप्रम सामाजिक वातावरण के भीतर पीढ़ी दर पीढ़ी संभ्राम करती आयी हैं। साहित्य उसके इन्हीं राजनैतिक (सामाजिक + श्रार्थिक) श्रान्दोलनों का प्रतिब्रिम्त्र है। मानव का यह विद्रोह सामूहिक और श्रेणीतद्ध द्ोता है। इस संघर्ष में मानव करणीय श्रौर अकरणीय का भेद समभता है और वह अपने भीतर घुलना त्याग कर अपने से बाहर श्राता द्वे । साहित्य मनुष्य के उस सामाजिक संघर्ष का &




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