पूर्वी और पश्चिमी दर्शन | Purvi Aur Paschami Darshan

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Purvi Aur Paschami Darshan by देवराज - Devraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 १३ : परिचित करा देने की इच्छ मुभे विवश कर देती दहै | श्लान के विना मुक्ति नहीं हैः, यह उद्गार सद्‌ा की भांति श्राज मी सत्य है । विश्व की ज्ञानराशि को श्रात्मसात्‌ करके ही हम भारतीय आगे बढ़ सकते हैं । इस पुस्तक के तैयार करने में मुझे जिन-जिन पूर्वी और पश्चिमी लेखकों से सहायता मिली है, उन्हें धन्यवाद देने की चेष्ठा व्यथं होगी | श्री गुलाबराय के कतिपय परामशों से में लाभान्वित हुआ हूं । मेरे सहयोगी प्रोफेसर नलिनविलोचन शर्मा ने अपने स्वर्गीय पिता पं» श्री- रामावतार शर्मा की लाइब्रेरी का स्वच्छुन्द उपयोग करने दिया; एतदर्थ मैं उनका कृतश हूं । जेन-सिद्धान्त-भवन, आरा, के भूतपूर्व सहृदय अध्यक्ष श्री पं- मुजबली शास्त्री का भी मैं आभारी हूं | इन सजनों की सहायता के विना सम्भवतः मुझे; यह पुस्तक लिखने का साहस भी नहीं होता, क्‍योंकि आरा जेंसे स्थान में आवश्यक पुस्तकें मिलना नितान्त कठिन था | इसके अतिरिक्त भैने समय-समय पर पटना यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी का भी उपयोग किया है, इसके लिए. उसके अधिकारियों को धन्यवाद देता हूं | सितम्बर, १६४४ देवर जैन कालेज, आरा देवराज




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