आधुनिक पत्राव्धाराना एवं शिवानी के उपन्यासों के पुरुष पात्र | Adhunic Patravdharana Evam Shivani Ke Upnashayon Ke Purus Patra

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Adhunic Patravdharana Evam Shivani Ke Upnashayon Ke  Purus Patra by राजेश कुमार - Rajesh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(3) उसके अन्तःकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। मन ज्ञानेन्द्रियों से संस्कार प्राप्त करता है। फिर बुद्धि से संस्कार्रों का निर्णय करता है। इसके विपरीत प्रतिक्रिया में मन बुद्धि से विचार करता है, तदुपरान्त मन उस कार्य करने को इच्छा करता है। इस प्रकार फे क्रिया कलापों को व्यवसाय आत्मिकी बुद्धि और वासनात्मक बुद्धि कहा जाता हे, यही सारा प्रपंच संक्षेप में चरित्र कहलाता है। क्योंकि दर्शन मँ जो कुछ कहा गया दै, उस्म अन्तःकरण ` की प्रधानता हे। पाश्चात्य जगत में मनोविज्ञान के विकास होने के पश्चात्‌ चरित्र के बहुआयामी प्रति छवियों को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि वहाँ भी यह नहीं देखा गया ` कि इन परिभाषाओं में चरित्र को मूल रुप से बाँध ही लिया गया है। मैगडूगल ने चरित्र को प्रज्ञात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक तत्वों का संगठन माना है। मैगडूगल के इस वर्गीकरण में मूल प्रवृत्तियाँ है। डा0 रोबेक के अनुसार - “चरित्र जन्म जात मूल प्रवृत्यात्मक उत्तेजनाओं के निग्रह वाला एक सतत्‌ जागृत मनोवैज्ञानिक झुकाव है, जो एक .' व्यवस्थापक सिद्धान्त के अनुसार चलता हे ! इसी प्रकार शान्य ने लिखा ই ~ “चस्ति वह कार्य है जो सभ्यता या समाज के माध्यम से विकासोन्मुख होता दे 2 इस प्रकार मनुष्य के बाह्य रूप आन्तरिक सदाचार क्रियाँ प्रतिक्रियाएं एवं भावनाओं के रुप में चरित्र को परिभाषित किया गया है। इन भावनाओं और क्रियाओं के मूल में चरित्र की प्रेरक्क शक्ति और अन्तःकरण है। और इसे ही समग्र रूप से चरित्र का कारक कहा गया है। निष्कर्ष रूप में हम डा0 रणवीर रांग्रा से सहमत हो सकते हैं कि - “बुद्धि, अहंकार और मन इन तीनों की सम्मिलित प्रक्रिया अर्थात्‌ अन्तःकरण का ._ विकास ही मनुष्य का विकास है। प्रकृति के विकास होने के नाते उसके गुणों को धारण करने वाले अन्तःकरण के तत्व अर्थात्‌ बुद्धि, अहंकार और मन, पूर्व कर्म के अनुसार पूर्व 1. प्रॉयलम ऑफ परसनालिदी : योबेक, 00 177 2. करेक्टर इन द सेल्फ इन एक्सन इन दे प्रोसेस ऑफ कलेक्ट इज सम सेल मीडियम ভুল আত উন জনিত - मैक्स साहना, দ্র) 754




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