जिनेश्वरपद संग्रह | Jeneshvrpadsangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ ६५ ) पेरो पूरो कर वृषकाज धर्मको साखो ॥ ९९ पहाराज जिनेश्वर विरद कहावोजी-सु ०। (९५) चद्‌ नीहालदेकी चात ! सुमरन करे पारम रेंवकी दिव शिव सुख दातांर | सुमरन० ॥ टेर ॥ पहिले भवमें खा- मी मरु्शति छा जी कोई वाह्मन कुल अवतार। कमर অহন হিভ হা मारियो जी कोई सयो वटी गजसार ¦ शुमरन०॥ १ ॥ अणु्रतत पाठे गजने भावसूजी प्रमु सुरग वारमे जाय । অনা से चय कर स्वामी नरभव लियो जी २ कोई विद्याधर नरराय ॥ सुमरन० ॥ २ ॥ तपकरि चहुंचे सोलम दिवविषै जी कोई फिर चक्री पद पाय। भुनिन्नत धरकर स्वामी मेरे वन वसे जी* शकोई हते भीटने आय ॥ युमरन०॥ ३॥ मध्यम ग्रीवक स्वामी मेरे सुरभयो जी कोई फिर आनंद कुमार । पोडश कारन भाई प्रभु भावना जी २ कोई, प्राणत दिवपाति सार । सुमरन०।शे




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