जिनेश्वरपद संग्रह | Jeneshvrpadsangrah
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ ६५ )
पेरो पूरो कर वृषकाज धर्मको साखो ॥
९९
पहाराज जिनेश्वर विरद कहावोजी-सु ०।
(९५)
चद् नीहालदेकी चात !
सुमरन करे पारम रेंवकी दिव शिव सुख
दातांर | सुमरन० ॥ टेर ॥ पहिले भवमें खा-
मी मरु्शति छा जी कोई वाह्मन कुल अवतार।
कमर অহন হিভ হা मारियो जी कोई सयो
वटी गजसार ¦ शुमरन०॥ १ ॥ अणु्रतत पाठे
गजने भावसूजी प्रमु सुरग वारमे जाय । অনা
से चय कर स्वामी नरभव लियो जी २ कोई
विद्याधर नरराय ॥ सुमरन० ॥ २ ॥ तपकरि
चहुंचे सोलम दिवविषै जी कोई फिर चक्री पद
पाय। भुनिन्नत धरकर स्वामी मेरे वन वसे जी*
शकोई हते भीटने आय ॥ युमरन०॥ ३॥
मध्यम ग्रीवक स्वामी मेरे सुरभयो जी कोई फिर
आनंद कुमार । पोडश कारन भाई प्रभु भावना
जी २ कोई, प्राणत दिवपाति सार । सुमरन०।शे
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