सत्संग | Satsang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षक १२५
मूदान-ग्रान्दोलन का लकय शोपरण-रदित, शासन-विदीन समाज
कायम करना है। शोपषण-रहित तो समझ में आता है, लेकिन शासन-
चिदीन चे श्रापकी क्या मुराद है ! एक कॉलेज के वयोद्द् ने शिक्षकौ--
प्रोफ़ेसरों की सभा में बाबा से सवाल किया |
वाया ने कद्दा कि श्रापका प्रश्न बहुत श्रच्छा है । शोपण-रद्दित वी बात
तो पूँजीवादी व्यवस्था भी कबूल करेगी; इसलिए शोपण-रहित सप्ताज सब्रफो
মান্য है। लेकिन हाँ, शासनहीन सर्वमान्य नहीं | हम शासनहीन ही नहीं
कहते, शासनमुक्त समाज कहते है। यह एकदम से समर में नहीं आता ।
दो बातें ध्यान मे रखनी चाहिए। समाज का विकास होते-होते कल एक
विश्वव्यापी राज्य या वल्ड स्टेट कायम होगी, तब गाँव गाँव का काम कटोँ
से चलेगा ! मान लीजिये कि वल्ट स्टेट बन गया । उ्तका केन्र कुष्ठुन्तु-
नियाँ, दिल्ली, मास्फो, जहाँ मी हो, वर्दों से गाँव-्गाँव का काम तो नहीं
चलेगा । आज दिलल््शी से ही दमारे गांव गाँव की प्लानिंग होती है। 'वल्ई
स्टेट! मे यह नहीं हो सक्ता। शासन मुक्ति का मतलब यह है कि शासन
विकेन्द्रित दो। आम-सत्ता-पूर्ण ग्राम-स्वना चले । सब्र तरह का आयोजन,
ग्राम के उद्योग, शिक्षा, न्याय श्रादि स्य गांव में ही चलें । दूसरी यात्त অহ
है कि गाँव में जो राज्य चलेगा, उसके निर्णय एक्मत से होंगे। चार विरुद
एक प्रस्तावं पाख, तीन विदद्धः टो प्रस्ताव पास, यह गलत है । पंच गोले
परमेश्वर टौ चज्ञेगा । श्रगर ये दो बातें की जाती ई---तत्ता विक्ेन्धी करण
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