स्वतंत्र्योतर हिन्दी कथा साहित्य और ग्राम जीवन | Swatantrayotar Hindi Katha Sahitya Or Gram Jivan

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Swatantrayotar Hindi Katha Sahitya Or Gram Jivan by विवेकी राय - Viveki Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ (१५) अछूत--डोम, मुसहर, भंगी-चमार आदि । (१६) नवपरिवतित परिस्थितिर्या--नये प्रभाव, संसक्ृतियों की टकराहृट, आधिक संस्कृति । (१७) छृषि-संस्छृति, सौन्दयं और अन्य बातें-गाँव का समग्र सौन्दये, गाव की स्वना, भाषा ओर परिधान । पचन्‌ अध्याय नये सामाजिक मुल्य और स्वातंत्र्योच्तर कथा-साहित्य | पृष्ठ ३१६-३७३ (१) नये सामाजिक परिवर्तत और गाँव -- (२) मुल्यनुलंक्रमण की पृष्ठभुसि-- द प्राचीन सामाजिक मुल्यों की अवशिष्ट स्थिति, नैतिक मूल्यों কী गिरावट, नयी नैतिकता । (२) आधनिक्ता-- अनास्था, सत्रास, कठा, विरोध, विद्रोह, टठन, भग्नाशा, अप्र- तिबद्धता, अकेलेपन की अनुभूति, अजनबीपन, विक्षोभ, युक्त- कामता, बुद्धिवांद, टुकड् मे जीती जिन्दगी, मोहभग, अस्वीकार, मत्युबोध, सेक्स-विस्फोट, खोखलापन, नंगई, यूवाविद्रोह । ` (४) सम्बन्ध तनाव-- पिता-पुत्र, पति-पत्नी, तीसरे का प्रवेश, पति-प्रेमी दोनों की सहेज, नये सम्बन्धों की तलाश । (५) विघटन का सामाजिकं कोण : पारिवारिक विघटन पारिवारिक विघटन, सामाजिक विघटन, ग्राम विघटन, व्यक्ति विघटन, ग्रामजीवन के प्रति अरुचि । (६) भ्रष्टाचार | षष्ठ अध्याय ये गाँव की समसामयिक समस्‍यायें... ... पृष्ठ ३७४-४२७ ग्राम पंचायत, पंचायतों के दोष, सभापति, सरपंच, चुनाव-संघर्ष, निष्कर्ष पंचायत सेक्रेटरी, ग्राम-सेवक, बी० डी० ओ०, एम०




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