शेष वाणी | Shesh Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সমান £
रोगशय्या : गद्य-काव्य १४
ओर न समकेगा कुछ ~
धविस्म॒त युगर्मे दुलेभ प्षणो्मि
जीवित था कोई शायद,
हमें नहीं मिली जिसकी कोई खोज
उसीको निकाला था उसमें खोज ।
कलकत्ता
१३ सतेग्बर् “४०
१९१
जगतमें थुगोंसे हो रही जमा
सुनीत अक्षमा 1
अगोचरमें कहीं भी एक रेखाकी होते ही भुछ
दीर्थ कालमें अकस्मात् अपनेको कर देती वह निर्मूल ।
नींव जिसकी धिरस्थायी सम रखी थी मनम
লী उसके हो उठता है भूकम्प परल्य-नेतेनभे ।
प्राणी कितने दी अये ये बाँधफे अपना दल
जीवनकी रफ्रभूमिपर
अपर्याप्त शक्तिका लेकर सम्ब-
बह शक्ति ही है श्रम उसका,
अऋमशः असद्य दो छुप्त फर देती मद्दामारकों ।
कोई नहीं जानता,
इस विद्म कहाँ हो रही जमा
दारुण अक्षमा ।
दृष्टिकी अतीत न्नुटियोंका फर भेदन
सम्बन्धके दृट् रा्धका कर् रही वह छेदनं ;
इन्नितके स्फुलिह्वोंका भ्रम
पीछे लौसतेका पथ सदाको कर रहा दुर्गम् ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...