प्रेमसूत्र भाग ५ | Premsudha Part-v

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Premsudha Part-v by पं. भवानीशंकर शर्मा त्रिवेदी - Pt. Bhavnashankar Sharma Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~~~ उपदेशरचि-सम्यक्त्व ই ০ ६ পিপিপি লক্ষি के तार और पत्र आते हैं| जब आत्मा में सम्यक्व का आविर्भाव होता ই ते उसकी चमक से आत्मा निखरने लगती है, ओर वस्तु का यथावत्‌ निर्णय होता जाता है, ओर जब मिथ्यात्व का उदय होता है तो उसकी श्रद्धा हण्ती जाती है जैसे यह अव्ल सत्य हे कि भूतकाल मे अनन्त तीर्थंकर हो चुके है,वत्तेमान मे विदेद्‌ चेत्र मे वीस तीथकर विद्यमान हैं । वहा तीथेंकर और सामान्य केवली- दोनों प्रकार के जिन होते हैं] वे कम से कम दो करोड़ तो होते ही हैं। भविष्य मे भी अनन्त होंगे । परन्तु जिसके दर्शन की स्थिति डांवाडोल होती है,वहे ऐसी बातो पर विश्वास नहीं करता | समझता है कि यह सब मिथ्या है] वह किसी सिद्धात का निर्णय नहीं कर पाता | अ्रतएव ज्ञानी पुरुष कहते द कि सम्यक्त्व के विषय म जागरूक रना चाहिए ¦ इसे लू सभाल कर रखना चादिए, जिससे चरित्र रूप फल की प्राप्ति हो सके । मेने बतलाया है कि फूल के विना फल की प्राप्ति नहीं हो सकती | सम- 'कित सुन्दर फूल है तो चरित्र और तज्जन्य मोक्ष उस का फल है। दूसरे नम्बर पर उपदेशरुचि सम्पक्स्व है, जिस की प्राप्ति उपदेशा सुनने से होती है । जैसे भूख लगने से, भोजन को देखने से, पेट खाली होने से ओऔर भोजन -की वाते सुनने से भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है । इसी तरह अगर आप भगवान्‌ की वाणी और समकित की बातें सुनेंगे तो आप को उसे प्राप्त करने की इच्छा होगी ।'वह इच्छा उपदेश सुनने से होती है। एक नहीं, अनेक आत्माए उपदेश सुन-सुन कर मोक्ष पा छुकीं। आज भी जीवों को जो सम्पक्त्व मिला है, उसे वे समी पहले से ही लेकर नहों आए थे | प्राय उपदेश से ही समकित की प्राप्ति होती है | जो भगवान्‌ के वचनो भ विश्वास करने वले हे, वे ही यदि उलदी कथा करें तो इससे लोगों का सम्पक्त्व दूषित हो जाता है। देखिए न, आजकल बहिने सामयिक “म भी कहती दै -“वाई जी, आज कद वेणायो १” (लायो वणायो † च्रादि-त्रादि निंर्थैक यक्त कथा करती दै)! परन्तु च्ररी भोली




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