साधनसंग्रह - दूसरा खंड | Sadhansangrah - Dusra Khand

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sadhansangrah - Dusra Khand by पं. भवानीशंकर शर्मा त्रिवेदी - Pt. Bhavnashankar Sharma Trivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. भवानीशंकर शर्मा त्रिवेदी - Pt. Bhavnashankar Sharma Trivedi

Add Infomation About. Pt. Bhavnashankar Sharma Trivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दासभाव ३८६ ओऔमगवान के निर्मल यश को सुनकर मेरे अन्तःकरण में रज्ञोगुणी समीर तमोगुणी कुत्लिन ब्रक्तियोंका नाश करने वाढी भक्ति उत्पन्न हुई । सव साधनाभमि श्रीउपास्यद्रेवदो सेवा ही सुख्य है, अन्य सच कुछइलके अन्तर्गत हैं भोर इसके चिना अन्य सव कमं यथार्थं श्ट्ेइय को पूरा कर नहीं सकते | इस सेचा-घर्से सब प्राणि- योकाबहुत बड़ा उपकार होना हैं. ऋतएव संसारके कल्याण कै निनित्त ही श्री उपास्यदेव सेवा-धर्म ( शुद्ध भाव से किया ভুলা) ক चरते हैः- রর श्रीमदुसागवत पुराणका बचने हैः- तज्जन्म तानि' कर्माण तदायुस्तन्मनो वचः। नुणां येनेह विश्वात्मा सेव्यते हरि रीश्वरः । ६ । किंजन्ममिखिभिरवेह शौकलसाध्रैचयाक्ेकैः । कमैभिवी व्रयीपोक्तैः पुसो पि बिवुधायुपा । १० ॥ श्रुतेन तपरा वा करि वचोभिरिचत्तद्रन्तिभिः । ,बुदध्या का किं निपुणया व्ेनेद्रियराधसा । ११। किंवा योगेन सांख्येन न्धास्तस्वाध्याययोरपि । किंवा श्रेयोभिरन्यैश्च न यत्रात्मप्रद। हरिः । १२। श्रेयसामपि समैषामात्मा हवधिरर्थतः । सर्वैषामपिभृतानां हरिरात्मात्मदः भियः ॥ १३। यथा तरोरंलनिषेचनेन तप्यन्ति तत्स्कन्धञ्चुजोप शाखाः । माणोपहाराच्च यथेन्दियाशां तथेव सवाहण मच्युतेज्या ॥ १४ ॥ ( सक० ४ अ० ३१ ) अओनारदजी ने कहा-हे राजाओं - इस खंखारमें जिसके द्वारा पिश्वव्यापी श्षीसगवानकी सेवा हं।ती है वही जन्म, वही मन, वही




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now