मशाल | Mashal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
91
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मशाल॑
হচ্ছ মার পল ই कि प्रकाश झा विजय-च्षेत्र दिन दिन विस्तार
दा रहा है लेकिन, यह भी उतना ही सच्य है छि ज्यों ज्यों अ्रन्धफार
छा जेत्र सीमित, परिमित होता जा रहा है, त्यों त्यों वह सघन, सघनतर
देता नादा दै--एक जगह सिमटकर यह पोन पोनतर होता जाता है !
जो सेना विस्तृत ज्षेत्र में दिखरी-सी थी, यह परिमित ज्षेत्र में
श्रकिर संगठित, सुस्तब्नित হী আই ই]
अइ जहाँ श्रन्वकवार है, यहाँ वह पहले से मो ज्यादा मयानक,
घोमत्स श्रौर मारक है | यही नहीं, प्रकाश के इम श्ाविष्कारकों से
उसी शत्रुता बढ़ गई है। यह इमें श्रव जरा भी छरमा नहीं कर
सकता - बदला चुकाने को सदा डद्यत_
और, इह कहाँ नहीं है ! -बह तो चिराग की तलेटी में भी है।
हमारे पीछे तो बए छाया बनकर पी दे !!
ओऔर-तो और, हमने श्रभी तक कोई देनी गैस हंडिका या मिजली-
दी नहीं बनाई, जो इमारे दृदयों में मी प्रशाश पहुँचा दे |
मालूम हीता है, बाइर का सभी श्रन्धकार सिमटकर इमारे श्रंतर-
सम में डेरा डाले जा रहा है। कमी वह्शां एक टिम-टिमन्सा दीख
भी पड़ता था, लेकिन शरद उसका अस्तित्व भी नहीं मालूम हेता !
जब श्हियक्तो श्रि प्रद गद, तोये चमचतत्, নযা करे
बेचारे !
হাছন গান গাঁ रहते भी भ्रस्थे हो चले हें ! अग्धकार में
व्योल रहे हैं, मटक रहे हैं !
इम अपने ही श्रज्ञ की एक नस को काटकर खूत चूसते ऐं--खूम
छ ४
User Reviews
No Reviews | Add Yours...