विनोवा के जंगम विद्धापीठ में | Vinova ke Jangam Vidyapith Main

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Vinova ke Jangam Vidyapith Main by कुंदर दिवाण -kundar diwann

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ शचामून', ामिकर मतुप्य बा विचार, चूनावमे मेरीदृष्टि, ष्ट तया स्पष्ट, डिक्टरेफोन नहीं चाहिए, सुवर्शककणवत्‌ विवर्त जय शम्भो ! जय महावोर ! १३६-१४० रतलाम वा मन्दिर जैन झौर सतातनी ১ १४० धर्म वा भ्विरोधी बाम शकराचार्य का पश्र्थ, गीता के दो विभूतियोग । मालपस्त का सिद्धान्त १४१-१४२ ४, बलिदान का प्राकर्षण ष्र्‌ ८. विवक्षा-पाट १४३.१४४ ६. जागतिक लिपि १४४-१४५ ७. कणिका--६ १४५-१४६ उवार, एफ एफ टी , सत्तावन की समाप्ति ४ ८. भगवान्‌ बुद्ध १४६-१५१ वेद-निदक, नारायण हमारी पसदगी को चीजें देता है; प्रात्मा, वासना-निर्वाण प्रौर ब्रद्म-निर्वाण , पुनर्जन्म , पड्‌-दयंन ग्रौर ब्रह्म- मूत्रभाष्य के झनुवाद , 'पह-दर्शन' पर व्यग्यात्मक कविता, मृति- पूजा की कडी भ्रालो चना , हिन्दुघर्म वा स्वंधर्म-समन्वय (६. कणिका--१० १५१-१५५ पाच धर्म-तत्त्व, सर्व भर ववी र ; हिन्दी-प्रचार 'घधा' बन गया है; भ्ाजा मेरी रीति नही है, साने युरूजी के बारे मे मेरी गलती; बाधिन का दूघ पीकर क्र बने, घुमवकड़ी करो; ब्रह्म घौर दइहाविद्‌ , रापापण व1 रमणीपत्व , जिप्सी मेरे पर मे प्रवट है ६०. जीवन का दास्त्रीय नियोजन १५५-१५७ ६१. सौट प्राप्नो १५८-११५६ धम्मपद हमाराटी प्रय; जंसा 'पुराण' वैसा 'ुराण'; সবহা- द्वार; सब धर्मों का भ्रध्ययन वेदाध्ययन हौ




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