विनोवा के जंगम विद्धापीठ में | Vinova ke Jangam Vidyapith Main
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
शचामून', ामिकर मतुप्य बा विचार, चूनावमे मेरीदृष्टि,
ष्ट तया स्पष्ट, डिक्टरेफोन नहीं चाहिए, सुवर्शककणवत् विवर्त
जय शम्भो ! जय महावोर ! १३६-१४०
रतलाम वा मन्दिर जैन झौर सतातनी
১ १४०
धर्म वा भ्विरोधी बाम शकराचार्य का पश्र्थ, गीता के दो
विभूतियोग
। मालपस्त का सिद्धान्त
१४१-१४२
४, बलिदान का प्राकर्षण ष्र्
८. विवक्षा-पाट १४३.१४४
६. जागतिक लिपि १४४-१४५
७. कणिका--६ १४५-१४६
उवार, एफ एफ टी , सत्तावन की समाप्ति ४
८. भगवान् बुद्ध
१४६-१५१
वेद-निदक, नारायण हमारी पसदगी को चीजें देता है; प्रात्मा,
वासना-निर्वाण प्रौर ब्रद्म-निर्वाण , पुनर्जन्म , पड्-दयंन ग्रौर ब्रह्म-
मूत्रभाष्य के झनुवाद , 'पह-दर्शन' पर व्यग्यात्मक कविता, मृति-
पूजा की कडी भ्रालो चना , हिन्दुघर्म वा स्वंधर्म-समन्वय
(६. कणिका--१० १५१-१५५
पाच धर्म-तत्त्व, सर्व भर ववी र ; हिन्दी-प्रचार 'घधा' बन गया
है; भ्ाजा मेरी रीति नही है, साने युरूजी के बारे मे मेरी गलती;
बाधिन का दूघ पीकर क्र बने, घुमवकड़ी करो; ब्रह्म घौर
दइहाविद् , रापापण व1 रमणीपत्व , जिप्सी मेरे पर मे प्रवट है
६०. जीवन का दास्त्रीय नियोजन १५५-१५७
६१. सौट प्राप्नो १५८-११५६
धम्मपद हमाराटी प्रय; जंसा 'पुराण' वैसा 'ुराण'; সবহা-
द्वार; सब धर्मों का भ्रध्ययन वेदाध्ययन हौ
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