किशोरलाल भाई की जीवन- साधना | Kishorlal Bhai Ki Jeevan Sadhna

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Book Image : किशोरलाल भाई की जीवन- साधना - Kishorlal Bhai Ki Jeevan Sadhna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य-शोवन की विरासत्त ५ वी जरूरत वेदा हई । इम पर उनकी तरफ से दरखास्त की गयी वि आचार्यजी क्य बयान कमीशन पर लिया जाय। स्वामी नारायण पक्ष ने इसका विरोध किया और उसकी पुृष्टि में कहा गया कि आचार्यश्री नाट्यशालाआ में, नाचा में और वाराता के जुलूसा तक में जाते है। वारागनाएँ जिस जाजम पर नाचती है, उसी जाजम पर वैठकर उनके नाच भी वे देखते हैं 1 इस पर कोर्ट ने चललभकुल के आचार्य के नाम यह भाज्ञा जारी वी कि वे कोर्ट में आकर ही अपना बयान पेश करें। इस पर आचार्य को बडा आघात पहुँचा । वस्तुत इस बहिष्कार के प्रकरण में आचाये तो नाममात्र को ही झरीक थे। सारा कर्तृत्व उनके पुत्र का था। परन्तु कारोबार तो पिता के नाम से चछता था। वृद्धावस्था में कोर्ट में जाने की नौवत आना उन्हें बहुत वुरी तरह अखरा। उन्हाने आज्ञा दी किः महाजना कौ एवत्र करके किसी तरह यह झगडा निपटा दिया जाय अन्यथा वे अपना प्राण दै दे । इसका परिणाम यह हुमा कि वहिष्कार के निरचय रद कर दिये गये जौर महाजना की बैठक सत्मगिया के यहां हई । महाजना के विरुद्ध दायर क्ये गये इस दीवानी मुकदमे में लक्ष्मीचदजी के पुत्रों ने और विश्लेप रूप से क्शोरलाल भाई के पितामह रगीलदास उफं धेलाभाई ने प्रमुख भाग लिया था और खर्च का अधिकाद बोझ भी उन्हाने उठाया था। यो यद्यपि ऊपर से समझौता हो गया, फिर भी वल्लभकुल और स्वामी नारायणकुछ के अनुयायिया के बीच कुछ-न-कुछ अनवन और झगड़े बहुत दिना तक चलते ही रहे। विधिवत वहिप्कार तो उठा लिया गया, फिर भी स्वामी नारायण-सप्रदाय के अनुयायिया के साथ यथाशक्य सम्बंध न रखने की बृत्ति तो कायम ही रही। इसका परिणाम यह हुआ कि क्द्योरलाल भाई के पिता तथा चाचा आदि को जाति में से जल्दी जल्दी कयाएँ नही मिलो । समय को देखते हुए उनके विवाह बडी उम्र में हो सके । सूरतवाला ने तो लडकियाँ नही ही दी। इन चार भाइया में से तीन के विवाह बम्बई में और एक का बुरहानपुर में हुआ। वुर्टानपुर्‌ जव वारात पडी, तव ममधी की तरफ से कहा गया कि कण्ठी तोडोगे तब कया मिलेगी। कया पक्षवाल्य का अनुमान था कि वारात को वापिस हे जाने के वदले---वापिस जाना बुरा दिखेगा इस भय से--ये खोग हमारी यतः मान लगे ! परन्तु उन्हाने तो अपने आदमिया वग हवम दे दिया कि




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