कबीर साहिब की शब्दावली | Kabir Sahab Ki Shabdawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-चरित्र दे कबीर साहेव ने कमी किसी पचलित हिन्दू या मुसलमान मत का पश्ष नहीँ किया वरन समेँँ का दोष बरावर दिखलाया । उन का कथन है -- हिन्दू कहत है राम हमारा सुसलमान रहमाना । आपस में दोउ लड़े मरत है दुविधा में लिपटाना ॥ घर घर मंत्र जो देत फिरत है महिसा के अभिमाना । गुरुवा सहित शिष्य सब डूबे अंत काल पछ्चिताना ॥ कहते हैँ कि रामानंद स्वामी ने जो कमंकांड पर भी चलते थे पक बार अपने पिता के श्राद्ध के दिन पिंडा पारने को कबोर साहेग से दूध मँगाया । कथयीर साहेव जाकर पक मरी गाय के मुँह में सानी डालने लगे । यह तमाशा देख कर उन के गुर-भाइये ने पूछा कि यह क्या कर रहे हो मरी गाय कैसे सानी खायगी कवीर साहेव ने जवाब दिया कि जैसे हमारे गुरुजी के मरे पुरषा पिंड खायँगे । मांस मय वरन हर प्रकार के नशे का कबीर साहेव ने श्पनी बानी में निषेद किया है । कबीर साहेव जुलाहा के घर मेँ तो पले थे ही और श्राप भी कपड़ा चुनने का काम करते थे । वह गरहस्थ आश्रम मेँ थे श्रीर भेषों के डिम्व पाखंड और अहंकार को चहुत निंदनीय कहा है । कवीर साहेव की ख्री का नाम लोई और बेटे और बेटी का कमाल श्रौर कमाली था । किसी २ ग्रंथकारों का कथन है कि कवीर साहेव वालब्रह्मचारी थे श्र कभी ब्याह नहीं किया एक मुर्दा लड़के श्र लड़की को जिलाकर उनका नाम कमाल और कमाली रकक्‍्खा और उनके पालन का भार लोई फ्रो जो उनको चेली थी सैँप दिया पर यह ठीक नहा जान पड़ता | जो कुछ हे। लोई कबीर साहेव की सच्ची झर उचे दर्ज को भक्त थी । पक चार का ज़िकर है कि कवोर साहेव ने किसो खोजो को भक्ति का उदाहरण दिखाने के लिये अपने करगह में जहाँ वह लोई के साथ दोपहर को ताना दुन रहे थे धीरे से ढरकी अपनों बँहोली से छिपा ली श्र लोई से कदा कि देख ढरकी गिर गई है उसे ज़मीन पर खोज । चह उसे तुते ढूँढ़ने लगी श्ाख़िर को हार कर काँपती हुई उसने झज॑ की कि नहाँ मिलती । इस पर कवीर साहेब ने जवाब दिया कि तू पागल है रात के समय बिना दिया वाजे द्ढ्तो है कैसे मिले । श्पने स्वामों के से यह चचन खुनतेही उस को सचमुच ऐसा द्रखने लगा कि श्रैँथेरा है चत्ती जलाकर ढुढ़ने लगी जब कुछ देर हो गईं कबोर साहेब ने




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