प्राचीन भारत की सभ्यता का इतिहास | Prachin Bharat Ki Sabhyata Ka Itihas

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Prachin Bharat Ki Sabhyata Ka Itihas by श्री गोपालदास - Shree Gopal Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ 23) अभिप्राय सव॑ंसाधारण के सामने भारतवषं का एक उपयोगी ओर छोटा ग्रन्थ उप- स्थित करने का रहा है, भारतवष के पुरातत्व के विवाद का बृहद्‌ ग्रन्थ बनाने का नहीं । ऐसे ग्रन्थ का स्पष्टता और सविस्तार के साथ अध्ययन करना कुछ सहज काम नहीं है। इस ग्रन्थ के प्रत्येक अध्याय में जिन विषयों का वणन है उनके सम्ब- नध में बहुत सी छान बीन हुईं है ओर भिन्न-भिन्न सम्मतियाँ लिखी गई हैं। मुझे सन्तोष होता यदि में पाठकों के लिये प्रत्येक वादाविवाद का इतिहास, पुरातत्व के सम्बन्ध में जो बातें जानी गईं हैं, उनमें से प्रत्येक का वृत्तान्त ओौर प्रत्येक सम्मति के पक्ष और विपक्ष की बातों को लिख सकता। परन्तु ऐसा करने में इस ग्रन्थ का आकार तिगुना अथवा चोगुना बढ़ जाता और जिस अभिप्राय से यह ग्रन्थ लिखा जाता है उसकी पूर्ति न होती । अपने प्रथम उद्देश्य की पूति करने के लिये मैंने अनावश्यक वादविवांद को बचाया है और प्राचीन समय की हिन्द सभ्यता ओर हिन्दू जीवन की प्रत्येक अवस्था को जितना स्पष्ट और अविस्तृत वर्णन मुझसे हो सका है, दिया है । परन्तु यद्यपि इस ग्रन्थ में मेरा मुख्य उद्द इय अविस्तृत वणन देने ही का है तथापि मैंने यह उद्योग किया है कि इस पुस्तक को समाप्त कर लेने के उपरान्त भी पाठकों के हृदय पर उसका स्पष्ट प्रभाव बना रहे । इस हेतु मैंने विस्तत वर्ण॑नों को जहाँ तक हो सका बचाया है ओर प्रत्येक काल के मुख्य-मुख्य विष्यो को स्पष्ट रूप ओर प्री तरह से वणन करने का उद्योग किया है । उन मुख्य मुख्य घटनाओं को अथात्‌ हिन्दू सभ्यता की कथा की प्रधान बातों को-अपने पाठकों के हृदय पर अङ्कित करने के लिये जहाँ कहीं पुनरुक्ति की आवश्यकता पड़ी है वहाँ मैंने पुनरुक्ति को बचाया नहीं है । संस्कृत ग्रन्थों के अनुवादों से जो बहुत से बाक्य मैने उद्धत किए हैं वे पहले पहल मेरे अविस्तृत वर्णन के सिद्धान्त के विरुद्ध जान पड़ेंगे। परन्तु इन उद्धत वाक्यों का देना बहुत ही उचित था क्‍योंकि पहले तो ऐसे विषय में जिसमें कि बहुत सी भिन्न भिन्न सम्मतियाँ हो सकती हैं, यइ नितान्त आवश्यक है कि हम अपने पाठकों के सम्मुख उन मू पाठां को उपस्थित कर दें कि जिनके आधार पर हैंने अपनी सम्मति स्थिर की है। पाठक लोग उस पर स्वयं विचार करे ओर यदि मैंने जो सिद्धान्त स्थिर किए हैं उनमें भूल हो तो उसे सुधार सके । दूसरे हमारे प्राचीन ग्रन्थकारों के मूल ग्रन्थों से पाठकों को परिचित कराना ऐतिहासिक विद्या के लिये लाभदायक होगा । यह आझश्ञा नहीं की जा सकती कि काय व्यस्त




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