मृणालिनी | Mrinalini
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- सृणालिनी | | | {९
फिर सुन पड़ा--
वृन्दावनधनः, गोपिकामोहनः =; .
काहे तुम त्यागी रे १
देश देश पर, सो श्यामसुन्दर, क्
तुब हित फिरे बड़भागी रे।...
मृणालिनी ने गआवेग के साथ कहा--सखी ! सखी ! उसे . घर के
भीतर बुला लाओ | '
मणिमालिनी गयिका को बुलाने गद । उधर वह गने लगी-
फूले ই नलिन, यमुना-पुलिनः
बहुत पिपासा रे,
प्वंद्रमाशालिनी, ये मधुयामिनी,
मिटी नहीं आशा रे |
इसी समय मशणिमालिनी उसे बुलाकर घर के भीतर ले. आई । गायिका
पहले ही के सिलसिले में गाने लगी--- द
रनि रस-भरी, कहो तो सुन्दरी, `
कहाँ मिले देखा रे ।
सुन जाओ चलि, वाजे रे मुरलि,
. घन-घन एका रे |
मृणालिनी ने उसते कहा--वुम्दाया रला दहत मीठा दै | तुम इस
गीत को फिर गाघ्रो |
यहाँ गायिका को रूपरेखा का कुछ घणुन कर दिया जाय। उसकी : .
अवस्था यही सोलह साल को होंगी | घह प्रोडशीं ठिगने कद की ओर `
कृप्णवर्ण थी। उसका रंग पक्का काला होने पर भी ऐसा काला नथा कि
उसकी देह पर अगर মীহা ইভ जाता লী दिखाई न पढ़ता, अथवा शरीर
प स्याही पोतने से यह जान पड़ता कि उसने पानी से नहांया है, या पानी :
से नहाने पर जान पड़ता कि उसने स्याही पोत ली है । जैसा काला रंग
अपने घर मैं होनें पर हम. .उसे -साँवला या श्यामवर्ण कहते दे शरोर पराये घर
. में होने पर उसे कोयले-सा .काला .कहते है, वेसा दी इसका ऋब्णवर्ण था | /
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