श्रीमदउपासकदसासूत्र | Sri Mad Upasak Dashasutra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्रीमदउपासकदसासूत्र  - Sri Mad Upasak Dashasutra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about खजानचीराम जैन - Khajanchiram Jain

Add Infomation AboutKhajanchiram Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
€ন) फलं गच्छामि णं जाव पजुवासामि” एवं सम्पेहेइ २ त्ता गहाए सुरुप्पावेसाई जाव अप्पमहग्धाभर- णालक्लिय सरीरे सयाओ गिहाओ पडिशिक्खमद २ त्ता सकोरेण्टमल्नदामेणं चचेणं धरिजमाणेणं मशु- स्सवग्युरापरिक्छित्ते पायविहार चारेणं वाणियगामं नयरं मञ्मं मज्मेणं निगगच्डह, २ त्ता जेणामेव दुश्पलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छद, २ त्ता तिक्सुत्तो आयाहिणं प्रयाहिणं करेद, २ त्ता बन्दइ नर्मसदइ जाव पलु वासइ ॥ १० ॥ उस गाथापति श्रानन्दने, इस समाचार के बतलाये जानेपर, मनमें ठेसा विचार किया “ निश्चयी ( ठीक) श्रमण भगवान्‌ महावीरजी यहां पधारे है यह बड़ा शुभ वा मंगलदायक वृत्तांत है इसकारण में जाता हूं और ( बंद- ना नमस्कार करके ) सेवा भक्ति करता हूं” ऐसा विचार कर स्नान करके, सुन्दर बशर पहने ओर यथाविधि हलके शरीर महंगे आभरण शरीरपर आलंकृत करके अपने घरसे निकला जिससमय कोरण्ट के पुष्पोंकी मालासे अलंकृत छतरी उसके शिरोपरि सुशोभित थी और मनुष्योंके वर्गोंसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now