जैनेन्द्र के विचार | Jainendra Ke Vichar

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Jainendra Ke Vichar by प्रभाकर माचवे - Prabhakar Machwe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ परमात्म-तत््वके विषयमें जैनेन्द्रकी आस्तिकता कुछ अशेयवादियोंकी-सी है | वे तर्कसे परमात्माको सिद्ध नहीं करना चाहेंगे । उनके ख्यालमें तो ' जो है सो परमात्मा है! | उसे वे “ अस्तित्वकी शर्त ” मानकर चलते हैं। जैनेन्द्रकी इस भाजुकतामें हिन्दू मर्मियोकी-सी सारूप्य-प्रधान कातरता घुली हुई नजर आती है जो अत्यधिक माननीय नहीं तो भी सर्वथा मननीय अवश्य कह्दी जा सकती है । जैनेद्र श्रद्धाल हैं | वे अपनी श्रद्धा किसी भी चीजके खातिर खोना नहीं चाहते, अपनी भ्रद्धापर उन्हें इतनी श्रद्धा है। वे कछा, जीवन, साहित्य,---समस्त विचारोका अन्तबिम्दु उसी सत्य-तत्तकों मानते हैं । परन्तु, तो भी, वे परमात्माकों अगम और अज्ञेय ही समझते हैं। स्पेन्सरने जब ज्ेयवाद और अशेयवादकी मीमांसा की तब उसकी दृष्टि वेशानिक अधिक थी । पर जैनेन्धकी आस्तिकता याल्स्टाय या गाँधीके जेसी है जिसमें, विशानसे अधिक, केैंटके परमात्म-अत्तित्वकी नतिक आवश्यकताका तर्क हो अधिक कार्यशील है। यहां जैनन्द्रके सत्य ओर वास्तवके अन्तरको समझना होगा । तर्कशास्तरी ब्रेडलेके भास और वास्तव ? अंथर्मे कहा गया है कि ^^ वास्तवे साय मेरा संबंध मेरे सीमेत अस्तित्वमें है। क्यौ कि, इससे अधि प्रत्यक्ष संबंधों में कहौ आत हँ, सिवा उसके जिम भ महसूस कर रहा हँ यानी “ यह । 2 ( मासः प्रृ० २६ ) ओर यहाँ “यह ” उसी अर्थे बास्तव है जिस अर्थते जर कुछ वास्तव नहीं है ” (५० २२५) कुछ कुछ यही स्थिति ज्यूलियन हक्स्‍ले जैसे वेशानिकन अपने “ साक्षात्कारशन्य धर्म ” नामक पुस्तक स्पष्ट की है। यह; तके ।क चतन मनकी थ्येरी दंजाद करनेवाले विलियम जेम्स जैसे मनोवैज्ञानिक मी अन्ततः जाकर जव जब्र रहस्यवादी बने ह, तब तव यह जान पडता है कि वेशञानिक अथवा तार्किक बुद्धि दी सत्यश्नो समग्रतसि आकलित करनेका मार्ग नहीं। उसे भावगम्य भी बनाना हगा। य्ह हारदिकता आर शरद्धाकी महत्ता, आपसे आप, उद्भूत ओर सिद्ध हो जाती है । यहाँ जनेन्द्रक समाश्वि[दके विषयर्म एक शब्द कहना जरूरी होगा । जैनेन्द्रके समष्टिभाषमे आत्म-तत्तका न गोण माना गया और न भुलाया ही गया है। या कुछ सुधारकर कह तो सच्च आत्म-बोधमस द्वी समष्टि-बोघ जाग्रत होगा ऐसा माना गया ह । ‹ जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है” जैसी सर्वात्ममावकी स्थितिर्मे पहुँचनपर मोक्षका, यानी अध्यात्मका, महत््वशाली मसला अलग या दूर नहीं रह




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