महाभारत | Maha Bharat

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Maha Bharat by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेट सत्यवती गौर भीष्म अदिफा नाम की एक लप्सरा स्वगं में भ्रप्ट होकर यमुना में _ मछली होकर रहती थी । राजा उपरिचर के वीर्य को खाकर वह गर्भवती हो गई । इसे मछुओं ने पकड़ा कौर पेट चीरा, तो एक बालक गौर बालिका सिकली । यह खबर राजा उपरिचर को मिली, तो बडे चकित हुए, और बालक को अपने यहाँ ले गए । यहीं बालक वाद को मुद्य्य-नामक प्रसिद्ध राजा हुआ । बालिका का नाम पहले मत्म्ययवा था, फिर वहीं सन्यवती कहलाई । यमुना के किनारे इसके रक्षक पिता का निजी मकान था । वहाँ रहकर अपूें रूप और यौबने का उसमें प्रकार फैला । केमी-क्मी पिता के ने रहते या किमी काम से लगे होगे पर स्वय यात्रियों को गगा-पार ले जाती थी । इसी समय एक वार ऋषि यमुना-पार होने के लिये बाएं । सत्यवती उन्हें पार उतारने सई ' परादार की उससे भोग करने को इच्छा हुई । उसने ऋषि की टच्छा पूरी की । इसी से व्यासदेव की उत्पत्ति हुई । पहले मत्म्यगपा को देह से मछती की दू थी । ऋषि की इच्छा प्री करने के बाद, उनके वर से, टमकी देह से एक थोजने तक सुगंध निक- लगे लगी । इसमें दसका नाम योजनगधा हुआ । इसके आत्मज ब्यास ईश्वर के अवनारी में गप्य हुए । महाभारत की उन्हीं ने रचना की । एक दिन महाराज शातनु मृगया करते हुए गगा के तट पर पहुंचे, तो देखते हैं, वहाँ का समस्त दिडमडल दरों से ढका हुआ है । उनके निकट- यर्ती होने पर घालक देवब्रत ने जपनी आजन्म दाक्ति से पहचान लिया, परंतु सोचा कि माता को चलकर यह संवाद टू, नहीं तो पिताजी मुझे पहचान न सकेंगे । यह सोचकर, देवग्रत मंतर्वान होकर माता के पास गए, और उनमे पिता के आगमन था सारा हाल कहां । श्रीगगाजी देवब्रत को साय लेगर महाराज शांतनु के पास आई, और सुस्किरानी हुई वोली-- “महाराज, शर-जात से अतरिस को समाच्दन करनेवाला यह आप ही का आत्मज देवग्रत है। अब यह दास्य और चास्यों मे निषुण हो गया है । बशिष्ठ, परयुराम आदि सहदाधार गुरजनों में मैंने इसे शिक्षा दिलाकर सुयोग्य कर दिया है । अब आप इसे अपनों राजधानी से जा सफते हूँ ।” यह मटफकर गगादेशी ने वा हाय पिता को परड़ा दिया, फिर अदृग्य हो गई । अादिपय




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