महाभारत | Maha Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.55 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जेट सत्यवती गौर भीष्म
अदिफा नाम की एक लप्सरा स्वगं में भ्रप्ट होकर यमुना में _ मछली
होकर रहती थी । राजा उपरिचर के वीर्य को खाकर वह गर्भवती हो गई ।
इसे मछुओं ने पकड़ा कौर पेट चीरा, तो एक बालक गौर बालिका सिकली ।
यह खबर राजा उपरिचर को मिली, तो बडे चकित हुए, और बालक को
अपने यहाँ ले गए । यहीं बालक वाद को मुद्य्य-नामक प्रसिद्ध राजा हुआ ।
बालिका का नाम पहले मत्म्ययवा था, फिर वहीं सन्यवती कहलाई ।
यमुना के किनारे इसके रक्षक पिता का निजी मकान था । वहाँ रहकर
अपूें रूप और यौबने का उसमें प्रकार फैला । केमी-क्मी पिता के ने
रहते या किमी काम से लगे होगे पर स्वय यात्रियों को गगा-पार ले जाती
थी । इसी समय एक वार ऋषि यमुना-पार होने के लिये बाएं ।
सत्यवती उन्हें पार उतारने सई ' परादार की उससे भोग करने को इच्छा
हुई । उसने ऋषि की टच्छा पूरी की । इसी से व्यासदेव की उत्पत्ति हुई ।
पहले मत्म्यगपा को देह से मछती की दू थी । ऋषि की इच्छा प्री
करने के बाद, उनके वर से, टमकी देह से एक थोजने तक सुगंध निक-
लगे लगी । इसमें दसका नाम योजनगधा हुआ । इसके आत्मज ब्यास
ईश्वर के अवनारी में गप्य हुए । महाभारत की उन्हीं ने रचना की ।
एक दिन महाराज शातनु मृगया करते हुए गगा के तट पर पहुंचे, तो
देखते हैं, वहाँ का समस्त दिडमडल दरों से ढका हुआ है । उनके निकट-
यर्ती होने पर घालक देवब्रत ने जपनी आजन्म दाक्ति से पहचान लिया,
परंतु सोचा कि माता को चलकर यह संवाद टू, नहीं तो पिताजी मुझे
पहचान न सकेंगे । यह सोचकर, देवग्रत मंतर्वान होकर माता के पास गए,
और उनमे पिता के आगमन था सारा हाल कहां । श्रीगगाजी देवब्रत को
साय लेगर महाराज शांतनु के पास आई, और सुस्किरानी हुई वोली--
“महाराज, शर-जात से अतरिस को समाच्दन करनेवाला यह आप ही
का आत्मज देवग्रत है। अब यह दास्य और चास्यों मे निषुण हो गया
है । बशिष्ठ, परयुराम आदि सहदाधार गुरजनों में मैंने इसे शिक्षा दिलाकर
सुयोग्य कर दिया है । अब आप इसे अपनों राजधानी से जा सफते हूँ ।”
यह मटफकर गगादेशी ने वा हाय पिता को परड़ा दिया, फिर अदृग्य
हो गई ।
अादिपय
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