महावीर - वाणी भाग - 2 | Mahavir Vani Bhag - 2

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Mahavir Vani Bhag - 2  by रजनीश - Rajnish

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ महाबीर-बाणी . २ जब मृत्यु बहुत निकट आ जाती है तो ये बफर काम नहीं करते और घक्‍का भीतर तक पहुँच जाता है। तब फिर हमने सिद्धान्तों के बफर तय किये हैं । तब हम कहते हैं कि 'आत्मा अमर है। ऐसा हमे पता नही है, पता हो, तो मृत्यु तिरोहित हो जाती है । लेकिन पता उसी को होता है, जो हस तरह के सिद्धान्त बना कर बफर निमित नही करता है । यह অতিজবা ই । बही जान पाता है कि “आत्मा अमर है! जो मृत्यु का साक्षात्कार करता है, लेकिन हम बडे कुशल हैं, हम--मृत्यु का साक्षात्कार न हो, इसलिए आत्मा अमर है' ऐसे सिद्धान्त को बीच में खडा कर लेते हैं । यह हमारे मत की समझावन है। यह हम अपने मन को कह रहे हैं कि घबडाओ मत--'शरीर ही मरता है, आत्मा नहीं मरती” तुम तो रहोगे ही, तुम्हारे मरने का कोई कारण नही है--महावीर ने कहा है, बुद्ध ने कहा है, कृष्ण ने कहा है, सबने कहा है कि “आत्मा अमर है! । बुद्ध कहे, महावीर कहे, कृष्ण कहे, सारी दुनिया कहे, जब तक आप मृत्यु का साक्षात्कार नही करते हैं, तब तक आत्मा अमर नहीं है। तब तक आपको भलीभाति पता है कि आप मरेंगे, लेकिन आप मृत्यु के धक्के को रोकने के लिए बफर खडा कर रहे हैं। शास्त्र, सिद्धान्त, शब्द, सब बफर बन जाते हैं। ये बफर न टूटे, तो मौत का साक्षात्कार नही होता और जिसने मृत्यु का साक्षात्कार नही किया, वह अभी ठीक अर्थो मे मनुष्य नहीं हुआ, वह अभी पशु के तल पर जी रहा है। महावीर का यह सूत्र कहता है, 'जरा और मरण के तेज प्रवाह मे बहते हए ओव के लिए, धमे ही एक मात्र द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है।' इसके एक-एक शब्द को हम समझे । जरा भौर मरण के तेज प्रवाह मे ।* इस जगत्‌ मे कोई भी चीज ठहरी हुई नही है, परिर्वातित हो रही है प्रतिपल भौर हस प्रतिपल् परिवर्तन मे क्षीण हो रही है, जरा-जीणं हो रही है। माप जो महल बनाये ह, वह कोर हजार साछ बाद खण्डहर होगा, ऐसा नही, वह अभी खण्डहर होना शुरू हो गया है, नही तो हजार साल बाद भी खण्डहर हो नहीं पायेगा । वह्‌ अभी जीणं हो रहा है। अभी जरा को उपलब्ध हो रहा है।




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