रविन्द्र - साहित्य भाग - 12 | Ravindar -sahitya Bhag-12

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Ravindar -sahitya Bhag-12 by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आखिरी कविता १३ है सौर भरमाती भी। चिर्योकौ डिविया अफीमसे भरपूर है, और अरकृृति-शैतानिन उन्हे मदद पहुँचाया करती है।” एक दिन इन लोगॉकी वालोगजकी एक साहित्य-सभामे आलोचना का विषय था--रवोन्द्रनाव ठाकुरकी कविता! अमित अपने जीवनमे यही पहले-पहल सभापत्ति होनेको राजी हुआ था , और गया था मन-दी-मन युद्ध-सजा पहनकर । एक पुराने जमाने-के-से बहुत ही नले आदमी वक्ता थे। रवीन्द्रनाधकी कविता कविता ही है, यही अमाणित करना उनका उदेद्य था । दो-एक कालेजके अध्यापकोंके सिवा अधिकाश सभ्योने यह बात खीकार कर लो कि प्रमाण एक तरदसे सन्तोषजनक है । सभापतिने उठकर कहा--“कवि माच्रके लिए यद उचित है कि बह पाँच वर्षक्ी मियादके अन्दर कविता करे , पचीससे लेकर तीस तक। यह बात हम नहीं कहेंगे कि बादके कवियोंसे हम भौर-भी कुछ अच्छी चीज चाइते हैं, हम कहेगे, और-कुछ चाहते हैं। फजली आम निवट जानेपर यह नहीं कहेगे कि 'फजलीसे बढिया आम लाओ / कहेंगे, 'नूतनवाजारसे बढ़े-बढ़े देखकर शरोफे तो ले आओ जी।? कच्चे हरे नारियलक्री मियाद थोढ़ी ही है, वह रसकी मियाद है, पक्की कड़े नारियलको मियाद ज्यादा है, वृह गरीकी मियाद है) कवि होते हैं क्षणजीवी, और फिल्सॉफर (दार्शनिक) की उमरका कोई ठीक नदीं । > > > सीन्द्रनाथके विरुद्ध सबसे बढ़ी शिकायत यह है कि बुड़ढे वर्डसवर्थकी नकल करके इजरत बहुत द्वी बेजा तरीकेसे जिन्दा हैं। यमराज वत्ती चुम देनेके लिए रह-रहकर फर्राश भेज रहे हैं, फिर भी हजरत सखदे-खहे




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