जीवन के तत्व और काव्य के सिद्धान्त | Jivan Ke Tatva Or Kavya Ke Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १५ |
जीवन-प्येय, ११७--शुफ्रमहम और शानह्वत, ११९--फाम-चेश पर भर्म श
नियन्त्रण, १५०-+-छावय्य-प्रेणा के मिन्न-मिन्त रुप, १९२--अवस्था-गेद से
काच्य-पेरणा, १२३ पासना ओर् उसके दपयोग, १२४-- उत्तेजित पायन
और उसके दमन का परिणाम, १९०--फ्राध्य-प्रेणणा फे घूछ বা বায়না
१२०--प्राचीन साहित्य-धाएणियों के मत से छाव्य-प्रेणा, 1९६--झाव्य-
प्रेरणा का प्रधान फारण--आलनसख, १%७--खांतःसुसाय और जनद्विताय,
१२८--दोनों का मूल पस्ठुतः एक दी हैं, ११५९ ]
सातयों अध्याय
लय आर छंद
[ छय और छंद का सम्बन्ध, १३९--छंद फा सखरुप, १३०--नया
और पुराना छंद, १३१--छय का स्वह॒प और जातीय संगत, १३६--छय
की प्रकृति, १३३--ध्यनि और उसकी विशेषता, १३३--अंतःफरण और
पंच तन्मात्राएं, १३४--छेद का विधान, १३५--काव्य और छंद फा
सम्बन्ध, १३६-- काव्य फी प्रतिष्टा, १३५८ खयं फी उत्पत्ति र उसके
कारण, १३७ ख्य क। आरोप--मापा प्र, १३९-- ख्य गौर संगीत,
१३९--पद् और लय, १४१--लछय और छंद्-विधान, १४ पर्णिक छद्
का लय-विन्यास, १४५--लय का विवेचन, १४५७--मान्निक छंद फा छय-
विन्यास, १४९--मुक्त छंद फा श्रीगणेश, १५०--छंद-विधान भें क्रांति फी
सपक्ष्यता, १५१-छंद्-विधान म॑ धामिकफत्ता, १५२-- मुक्त च्द ओर य्य,
१५३--मुक्त छंद का विवेचन, १५४--ऋत्रिमता और परम्परा, १५५---
मुक्त छंद का विधान, १५७--मुक्त छंद की लयात्मक प्रव्नत्त, १५७--पंत का
विचार, १५८--पाठक और श्रोता फे वीच खर् फा व्यवधान, १५९---छद
विधान में सम्वेदनांवांदं; १५९--उसकी विशेषता, १६१-- सम्वेदनावाद फी
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