प्यारे बापू | Pyare Bapu

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Pyare Bapu  by ओमप्रकाश - Om Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अहिसक असहयोग की ओर १७ रनेवाले हिन्दसानी भाइयों झे कष्टां को देखने का अवसर मिला | इस तरह कै अन्यायं को सहन करना उनके लिए दभर हो गया । प्रत्येक भारतीय ते गधीजी को सहयोग देने का वचन दिया | यों गांधीजी पर भार बढ़ता गया । एक बार फिर श्रिटोरिया की गाड़ी में बेठने का अवसर आया | अपनी जिद से इस बार भी गांधीजी ने प्रथम श्रेणी का ही टिकट लिया। शाव को टिकट बाबू टिकट देखने आये । उन्हें गांधीजी पर बहुत गुस्सा आया | उन्होंने कहा ; “निकलों यहाँ से ओर जाकर तीसरे दर्जे के डिब्बे मेँ वये । गांधीजी ने धैय क साथ उत्तर दिया: “धरं नहीं जाऊंगा | पेरा टिकट पहले दर्ज का हैं |” टिकट बाबू दुगुने जोर से चिल्लाया : “लेकिन में तुमसे कहता ह क्रि तुम तीसरे दर्ज में जाओ |”! यह पुराना-सा किस्सा हो गया | सोभाग्य से उस डिब्बे में एक व्यक्ति और बैठा णा | वह उटकर बोला: “टिकट बाबू, कृपा करके इन साहब को बेठने दीजिये। थे ठीक कहते हैं । इनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट हैं। इसमें मुझे तनिक्क भी क्र हमा 1 टिकट बाबू हताश हो गये । “वाह ! में तो आपके [9 (4 ४




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