बिगड़े हुए दिमाग | Bigde Hue Dimag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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No Information available about भैरव प्रसाद गुप्त - bhairav prasad gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिगडे हुये दिसाग | | १५
गगन-भेदी नारे लगाते लपटो के उन पुत्ल्लो का अत्था शाला-मा
अडकता निकक्ष गया '
टमी तरह एक बार रान् सत्तावन में भी कौस का दिसास
चिगडा थाः, सामने शून्य से आँखे टिकाये पिता आप ही बड-
बडा उठे--'लस समय उसकी दवा गोरों ऑर देश के गद्दारों की
गोलियों ने की थी। अबकी फिर राष्ट्र का दिमाग बिगडा है।
देखें इस बार ' ओर बह' एक पागल की तरह अद्रहास
कर घटे ।
गाँव के नोजवानों के साथ धीरेन पूर नौ दिन तक घर न
लौटा । घर मे बूढे और बूढियाँ आंखों मे सौफ का सन्नाटा और
दिल व दिमाग में भयरर आशकाओं को लिगे विन रत्त बनी
प्रतीक्षा मे घरों की चोखट पर बेठी रही । आज खबर आयी कि
फलों-फलों थाने जला दिये गये, पुलिस बन्दूर्के फेर फेक कर ऐसे
भागी, जरा उनके हाथों से बन्दूके नहीं, कियी ने बिच्छू पकड़ा
दिय हों} कल समाचार श्राया कि फरल फलों बीज गोदाम लू
लिये गय | ऐसे ही स्देशनो फे जलाने, पटरियो के उखाडने,
कलग्टरियो ॐ पने, ओल्ल के दरवाजे तोडने, खजानो के लूटने
फी खयर एक-एक करके श्माती राह । आखिर एक दिन यह् भी
समाचार आ ही गया कि कलक्टर पकड लिया गया । उससे
बाकायदे जिल का चाज ज़िल्ला काने स के सभापति को दे दिया |
अब जिला आजाद है | अगरेजी हुकूमत का शव शोलो में जला
दिया गया ।
दसय दिन धीरन का दल विजयोत्लास मे देशप्रेम भरे गाने
गाता, क्राजादी के नशे में कूमता हुआ गोव मे वापस आ गया।
यूढे-बूढियों को उनकी आजादी की घोषणा से जितनी खुशी नहीं
हुई, उतनी अपने लालो के सद्दी-ललामत बापस आ जाने पर
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