एक अभूतपूर्व चातुर्मास | Ek Abhutpurva Chatumars

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Ek Abhutpurva Chatumars  by प्रकाश जैन - Prakash Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अहिसा-सयम-तप क्र धम्मो मगलमुक्किट्ट, अहिसा सजमो तवो। देवावि तं नमंसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ जहा दुमस्स पुष्फेसु, भमरो आवियरई रसं । न य पुष्फ किलामेइ, सो य पीणेइ अप्पयं ॥ एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो । विहंगमा व ॒पुष्फेसु, दाण-भत्तेसणे रया ॥ वयं च वित्ति लन्भामो, न य कोई उवहम्मइ । अहागडसु रीयते, पुष्फेसु भमरा जहा ॥ महुगारसमा बद्धा, जे भवंति अणिस्सिया । नाणा-पिडरया दंता, तेण बुच्चंति साहूणो ॥ --ततषेनि




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