मुक्ति के पथ पर | Mukti Ke Path Par

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[নও विचार बता दिये हे । जेन झासनमें सब भनुष्य समान है गुणोका ही सूल्य है, जातिका कोई मूल्य नही, यह बात भगवान महावीरने अपने अ्रौमुखसे बलाई है। अपने समवसरणमे गदहे जौर कुले तक आते थे एंसा बताकर भी बताई है, तो भी आणका जड़ समाज़ यह কাজ न समझ कर और मनृष्य-मनुष्यमें जातिगत उच्चता व नोचताको मान कर भगवान महावीरका घोर अपमान कर रहा है । हमारे जैसू मूनि आचाये व स्थ।विरोको भी अह बात नही सूझती तौ विचारे भ्ज्ञानी समाजकी क्या बात ? परन्तु लेखकके समान क्रान्तिमय विश्वारवाले युवक समाजमें पक रदे हें जिससे जाशा पड्तीहं कि अच ज्यादा समव तके भमवानको ध्ाणीकी अवहेलना न हो सकेगी । धर्मकी रेखा 'की कहानीमे राजा गर्देशिल्‍लने साध्वी सरस्वर्तोका अपहरण किया था और उसे उसके भाई आचार्य कारूकने केवल अपने बलसे ही मृक्‍त कर फिर साध्वी सघमे प्रव्नेश कराया था । इस बृतात को लेकर धमंकी रेखा खीची यई हे + काकछूकका समय यहा खुलिदिचत नही जान पड़ता सी भरी षह दौर निर्वाणकी तीसरी चौड़ी शक्ताब्दीमें उसको विज्यमनतः मांगलेमे प्राय आापा सही लगती + सरध्वतीका अपहरण बताता हू कि राजा ठोक भन्त डी बन गये थ अन्यथा सम्पासिनीका अपहरण कंसे हो सङ? जा सो गये कक जायें इसमें कोई अच्षयजकी बात नही परन्तु মজাক্ষী जनता ओर जिस धर जंनसलको व्यवस्योका सारा भार के बह अ्मक्ष- समर भी उसे समय जफ़र जर्ल पेराइमुख हो कया का ।




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