ज्योत्स्ना | Jyotsana
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.6 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्योह्स्ना ७
ऊपर उठाकर उसके स्वभाव को मार्जित बनाएगी । चारोओर
स्नेह, सुख, सौदर्य, संगीत का सागर उमड़ उठेगा। एक दाब्द
में, संसार में स्वग उतर आएगा ।
छाया--( आनंद जोर आात्चर्य से) संसार मे स्वग | ऐसा
क्या संभव हो सकता है; जीजी !
संध्या-संपतार कभी से आदरो-स्थिति के स्वप्न देखता
आ रहा है | मनुष्य अपनी उबर बुद्धि के अनेक विचारों; हृदय
की मनोरम भावनाओं-वाल्पनाओं से निर्मित, सब प्रकार से पूर्ण;
आदर्य परिस्थितियों के लोक मे रहना चाहता है। समय-समय
पर उसने जीवन की पूर्णता को अनेक स्वरूप दे डाले है।
ज्ञान-विज्ञान के बल से अनेक मानसिक, भौतिक दाक्तियों पर
विजय प्राप्त कर् ठी है। अब वह आदर्श-स्थिति का उपभोग
'करना चाहता है ।
छाया--विधाता के विधान का रहस्य अज्ञिय है; जीजी !
मैं अनादि काल से देखती आई हूँ, संसार मे चिरकाढ तक
कोई भी स्थिति नहीं ठहर सकती; इससे सृष्टि के स्वतंत्र विकास
मे बाघा पड़ती है ।
ू सहसा दश्किण की खिड़की का परदा हिरने रुगता हैं । पदन झरोखे
से कूदकर अंदर आता है | पवन सुंदर, स्वस्थ, अनिरातप से पोषित द्मित-
मुख युवक, बदन में हठके आसमानी रंग की जांठी, जिसमें यत्र-तत्र
'फूकों का पसग कमा है; घृ घुराठी, भूरी अठकों से उठी करियों, हाथ
2 च्झ
में आन की भंजरी, गठे में पत्ते की रुचीती टहनी का 'घनुष 1 पवन
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