सारा संसार | Saara Sansar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५
नियम हो । उनके दूसरे लड़के आ रहे थे । मोहन राव । हाथ में थैली,
दिन-भर का नकद रुपया । पास वाली मेज पर थे थैली स्ख कर
वापस मुड़े ही थे कि उतके पिता ने पूछा, “रामू आया है कि नहीं ?
“नीचे तो नहीं दिखाई दिया, ऊपर भी नहीं है ।””
८ दु,
मोहन राव ने फिर जाना चाहा जैसे वहाँ खड़ा रहना उसके लिए-
' कठिन हो रहा हो, लेकिन इतने में पिता बोल उठे, “उससे बातचीत
की थी, समझाया था ? ”
“जी नहीं, वह मिला नहीं, सोचा था कि श्रव बातचीत कर
लूगा, फिर खयाल आया कि उससे बातचीत आप ही कर लें तो श्रच्छा
टोगा 1
/हूं, और क्या सोचा था ?” श्री बापिराजु की नजर जूरा उठी
श्ौर मोहन राव की नज़र नीचे हो गई । इस बार उन्होंने जाने का
प्रयत्न किया ।
“कहीं यह भी तो किसी लड़की से प्रेम नहीं कर रहा है ? प्रेम
परेम “'” श्री वापिराजु ने परिहास में मुसकराना चाहा, होंठ
चपटाये भी, पर श्राँखे उनकी उद्विस्तता से उभर-सी रही थीं । “प्रेम
लिये बढ़ी कीमत देनी होती है ˆ“ पागलपन है, विना भाव पढाये
वेपरखा माल खरीदना है, रोक रहा था, कट् दिया, वरना इसके कहने
की जरूरत न थी, हाँ, जब वह मिले तो समभाचुझा कर कहना कि
जो सम्बन्ध हमने तय किया है वह हर तरह से श्रच्छा है, फ़ायदेमन्द
है और मुझे पसन्द है, समभे 1
श्री मोहन राव सुनकर नीचे चले गये । उनकी उम्र तीस-वत्तीस की
होगी 1 तीन बच्चे थे । कारोबार में हिस्सा या, श्रलग घार ने या
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