प्रगतिवाद | Pragatiwad

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Pragatiwad by शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रगतिवाद अ= ५4 ५, क च देखनां चाहिए किं हिन्दीके उच्चतम कलाकार परगतिवादको किसी दसी रूपभ श्रपनारहे दै, किसी च्रवसरवादके कारण नहीं वरन्‌ श्रपने जीवनके कठोर अ्नुभवसे जगी नयी चेतनाकी प्रेरणाओसे | इस वर्गकेलिए केवल इतना जानलेना ही उनको आत्मपीड़नसे मुक्ति दिलासकेगा । ९. ॥ # कि + নীল পনি ननो किक = पके ५




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