विषाद | Vishad
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ विषाद
ने खाने के बाद दो-तीन पूरियाँ और साग से सना हुआ टुप्पा फेका तो सब के
सब झपठे । हाथा-पाई हुईं । एक लडके ने टुप्पा उठा' लिया और पूरी का
कुछ हिस्सा दाँत से तोड कर दूसरे लडके को दे दिया। सब के हिस्से में एक-एक
ग्रास आया | मेने उस दृश्य से अपनी आँखे हटा ली, किन्तु वह दृष्य आगे से
न हटा। लडको का वही झण्ड , उनका वह उच्छिष्ट भक्षण, उनकी निधृ णता
सब एक-एक करके मेरे मन को उद्विग्न करने लगी । इन लडकों के मुह पर
दुनिया-भर की दीनता और नम्नता दिखाई देती है और दूसरे क्षण ही लगता है
इन बाखको मे कूट-कूट कर उहृण्डता भरी हुई है । कोई चिन्ता नहीं, तृप्त ओर
लापरवाह ! मेने आँख उठाकर देखा, उस झण्ड ने एक भोले भाले आदमी को
घेर लिया है, और उसके कुछ न देने पर वे उसकी खिल्ली उडा रहेहे।
बेचाराबचने के लिए जहाँ जाता है, यह झण्ड भी वहाँ पहुँच जाता है। वह
जितना घबराता है, उतना ही इन बालको कौ हिम्मत बढती है।
मेरे आगे वैसे ही दो ख्डके ओर आ खड हुए ! दोनो एक ही आयु के ।
वेश-भूषा, हाव-भाव और आकृति इतनी मिली-जुली कि दोनों को अलग करके
पहचानना कठिन था । एक फटी-सी लंगोटी लगाये, गले में तार-तार तना
हुआ कपडे का टुकड़ा लपेटे, इन्होने भी अपनी अभ्यस्त विनय से माँगा, लेकिन
इस बार इन्हे कुछ देने की इच्छा नही हुईं। लड़को ने अपनी विनय को कई गुना
बढाकर मॉगना शुरू किया । मुझे कुछ जिज्ञासा थी, अतः मेने कुछ देकर
दाता और भिक्षुक में अन्तर उत्पन्न नही करना चाहा। मस्कराने का प्रयत्न
करते हुए मेने मित्रता के भाव से उनसे पूछा :--
“तुम दोनो मद्रास चलोगे ? ”
“क्या मद्रास का स्टेशन भी नागपुर इतना ही बड़ा है ? ”
“इस से भी बडा ! लेकिन तुम्हें स्टेशन से क्या लेना है ?
“हमें स्टेशन ही पर तो रहना है । स्टेशन जितना आराम कहीं हौ ?
यहाँ कितनी तरह की चीजें खाने को मिलती हे। मारवाड़ी, गुजराती, बंगाली,
महाराष्ट्रीय, न जाने कहाँ-कहाँ के लोग आते हे । उन सब के साथ अपने यहाँ
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