अंक - विद्या ज्योतिष | Ank Vidya jyotis

Ank Vidya  jyotis by गोपेश कुमार ओझा - Gopesh Kumar Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झंक-चिद्या रहस्य श्दे वैसे ही प्रंक भी । झब्द के सुल--श्राकाश को-- दुन्य कहते हैं श्रौर अंक के सुल को भी शुन्य । लून्य से ही शब्द और श्रंक का प्रादुर्भाव होता है । यदि अंक संख्या का किसी वस्तु या क्रिया से सम्बन्ध नहीं होता तो हमारे शास्त्र १०८ मशियों की माला बनाने का विधान नहीं करते । प्रत्येक संख्या का एक महत्व है । २४५ मश्यों की माला पर जप करने से मोक्ष ३० की माला से धन सिद्धि २७ की माला से स्वार्थ सिद्धि ५४ से सर्वेकामावाप्ति और १०८ से सर्व प्रकार की सिद्धियाँ हो सकती हैं । किन्तु भ्रभिचार कर्म में ११४ मशियों की माला प्रदयास्त है । १०८ की संख्या का वया रहस्य है ? सूर्य राशिश्रमरणण में जब एक पूरा चक्र लगा लेता है तो एक बृत्त पूरा करता है । एक कवृत्त में ३६० अंश होते हैं । इस प्रकार सूये की एक प्रदक्षिणा के शरंशों की यदि कला बनाई जावे तो ३६० ९६०-२१६०० कला हुईं । सूर्य छः मास उत्तर श्रयव में रहता है श्रौर छः मास दक्षिण झ्यन में । इस हिसाव से २१६०० को दो भागों .में विभक्त करने से १०८०० सुंख्या प्राप्त हुई। . अब दूसरे प्रकार से विचार कीजिये । प्रत्येक दिन में सुर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय तक काल . का परिमाण- ६०. घड़ी माना है । १ घड़ी के ६० पल और १-पल के ६० विपल ।. इस प्रकार एकं अहोरात्र में -६० ६६० ६६०न्०२१६००० विपल हुए । इसके झ्राधे दिन में १०८००० श्र इतने ही रात्रि में ।.. . . . जैसे झाजकल की नवीन वैज्ञानिक स्रणाली के अनुसार रुपये रु देखिये ज्ञारदातिलिक का र३वाँ पटल--राधवभट्टू कृत पदार्थादश . .. च्यास्या । व प्‌ क् # है




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