प्रपंच परिचय | Prapanch Parichay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prapanch Parichay by आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिः - Acharya Visheshwar Siddhantshiromani:

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिः - Acharya Visheshwar Siddhantshiromani:

Add Infomation AboutAcharya Visheshwar Siddhantshiromani:

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ प्रपश्च-परिचय- सर और स्वाभाविक वस्तु हे, संसारका प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ भात्रा उससे युक्त अवश्य होता है; परन्तु दशैनशाखम इतनी सरर्ता और स्वामाविकताके रहते हुए भी दाशेनिक,-सचे दाशनिकका पद पा सकता बड़ा दुष्कर है, दुरूभ है, पृण्येकलम्य है। सम्भवतः इन पंक्तियोंके देखनेवालेकी आपाततः उनमे कुछ विरोध दिखाई दे, मगर वह विरोध प्रामाणिक है, उसका परिहार किया ही नही जा सकता | छोकमै मसकछ मशहूर है कि रोना ओर गाना किसे नहीं आता £ परन्तु संसारम कितने है जो वस्तुतः रोना जानते हौ? हाँ, कितने है जिन्हें गाना आता है £ रनम एक दई होता है ओर उस दध्म एक आनन्द होता हे | হই दिल्का यदौ घुख; यदौ आनन्द करुण रसम पर्ुचकर ' ब्रह्मानन्द-सहोदरः ` बन जाता है । বানর भी एक लोच होता है; एक चुल्बुलाहट होती है। यही छोच यही चुलबुलाहट उस गांनिकी जान है | रोनेका वह दर्द ओर गनेका यह लछोच ही ते है जो सुननेवलिेके दिलको मसोस डाढछते हैं, विवश कर देते है, काबूसे बाहर कर देते है । हाँ, संसारके उन तमाम रोने और गानेवालेमेंसे कितने हैं, जिनके रोने या गानेंगे वह दर्द, वह चुलबुलाइट पाई जाती हो £ विरले, बहुत विरले | कवियोके जमतूमं भी तो बरसाती, हाँ तुकबन्दी करनेवाले कवि, हजाए?ं- स्वोकी संख्याम पाये जाते हैं, गलियों मारे मारे फिरते हैं, परन्तु फिर भी विष्णुपुराणके अनुसार कवित्व मानव-जीवनका सार ओर उसकी अत्यन्त विकसित अवस्था है-- नरत्वं दुरेभं रोके, विद्या तत्र सुदुङेभा । कवित्वं दुरम तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुरुभा ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now