साहित्यालाप | Sahityalap

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवनागरो-लिपि का उत्पत्ति-काल १९. नक्र हे।ये वाते तमी सम्भव होती हैं जब भाषा लिखित रूप में प्रचलित हे। । पाणिनि ने “ग्रन्थ! शब्द का भी कई बार उपयाग किया है; इससे भी उनके समय में लिपि का হালা सिद्ध है; क्योंकि अथन करना अर्थात्‌ गुथना वशं के चिना सम्भव नहीं । और मन्थ का अथे वाच्यं या शब्दो का गृथना ही हे। ललित-विस्तर एक प्रसिद्ध अन्थ है । वह एक बोद्ध परिडत का बनाया हुआ है । पश्लोक-वालछा डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र ने उसका सम्पादन करके उसे छपाया है। डाक्टर साहव ने सकी जे भूमिका लिखी हे वह बड़ी ही चिद्धत्तापूण हे ७ इंसबी में इस पुस्तक का अजुवाद चोनों भाषा में इुआ था। নান चारुचन्द्र वन्चयोपाध्याय अपने एक लेख में इस पुस्तक ছি क चै का हवाला देकर लिखते हं कि शाक्यसिंह ল লিহলালিজ नामक एक अध्यापक से लिखना सोखा था और अज्ज, वड्भ+ मगधघ, दविड आदि देशों में प्रचलित कई प्रकार की लिपियां वे लिखते थे । इससे स्पष्ट है कि ईसा के कई सो व पहले लिखने की कला का प्रचार इस देश में हा गया था, आर एक ही नही, भिन्त कई प्रकार की जिपियां प्रचलित हो गई थीं। हम यह लेख एक ऐसी जगह लिख रह है जहां ललितविस्तर अप्राप्य है। इससे हम बाबू चारुचन्द्र बन्दयोपाध्याय के दिये गये अमाण खुद नहीं देख सके । परन्तु हमके बाबू साहब के कथन पर विश्वास है | हम उनके दिये हुए प्रमाण के अम्ूलक नहीं समभते ।




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