गांधी वाणी | Gandhi vani

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Gandhi vani by श्रीरामनाथ सुमन - shriramnath Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य ] १७ नहीं किया जा सकता | ओर आत्म-शुद्धि के अभाव में अहिंसाधमे का पालन करना भी हर तरह ना मुमकिन है | चूँकि अशुद्वात्मा परमात्मा के दर्शन करने मे असमथ रहता है, इसलिए जीवन-पथ के सारे च्षेत्रों में शुद्धि की जरूरत रहती है | इस तरह की शुद्धि साध्य है; क्योक्रि व्यक्ति ओर समष्टि के बीच इतना निकट का सम्बन्ध है कि एक की शुद्धि अनेक की शुद्धि का कारण बन जाती है ओर व्यक्तिगत कोशिश करने की ताकृत तो सत्यनारायणु ने सब किसी को जन्म से ही दी है। “त्तेकिन में तो पल-पल इस बात का अनुभव करता हूँ कि शुद्धि का यह मार्ग विकट है। शुद्द होने का मतलब तो मन से, वचन से और काया से निविकार होना, राग-द्ेष आदि से रहित होना है | इस निविकार स्थिति तक पहुँचने के लिए प्रति पल प्रयत्ञ करने पर भी मैं उस तक पहुँच नहीं सका हूँ | इस कारण लोगों को प्रशंसा मुझे भुला नहीं सकती, उलटे बहुधा वह मेरे दुःख का कारण बन जाती है | मैं , तो मन के विकारों को जीतना, सारे संसार को शत्र-युद्ध में जीतने से भी कठिन समझता हूँ | **'**मैं जानता हूँ कि अभी सुझे बीहड़ रास्ता तय करना है| इसके लिए मुझे शूत्यवत्‌ बनना पडेगा | जबतक मनुष्य खुद अपने आप को सबसे छोटा नहीं मानता है तबतक मुक्ति उससे दूर रहती है । अहिता नम्नता की पराकाष्ठा है |“*““ओऔर यह अनु- भवसिद्ध बात है कि इस तरह की नम्नता के बिना मुक्ति नहीं मित्र सकती | ? --र्दि० ० क०। माग ५,अध्याय ४४,१७ ५५२५४ सस्ता संस्करण.१९३९ | संत्य का और क्या पुरस्कार होया ! ५.--सत्य क पालन में ही शान्ति है | सत्य ही सत्य का पुरस्कार ==




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