बहता पानी | Bahata Pani

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bhahata pani by भगवतीप्रसाद वाजपेयी - Bhagwati Prasad Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहता पानी १५ कोशिशें की जाने लगी, लेकिन मणालिनी देवी ने उस अवस्था में हिन्दू समाज को रहण करना स्वीकार किया जब डसे काशी के पंडित सनातनधमे के मंडे के नीचे स्वीकार करें | डस दशा में डसने अकेले ही नही, वनारस पुलिस कप्तान की कन्या कुमारी भारगरेट समेत हिन्दू धर्म को स्वीकार कर लेने . का वादा क्रिया। आय्यसामानिक डपदेशक आपस में कानाफ्सी करने लगे कि मणालिनी से ऐसा कहलाने में उसके पिता भिस्टर सिंह की एकचाल है। , ? जो हो, शुद्धि-सभा वालों को-- सफलता नहीं मिल्ली | दूसरे दिन बड़े समारोह के साथ ईसाइयों ने शिवग्रसाद को ईसाई धस्म में दीक्षित किया और शिवप्रेसाद मिस्टर सिंह “के यहाँ जामाता के रूप में रहने लगा | [ ४ |] असफलता समस्त उत्साह को ठंढा कर देती है। जिस अवस्था मे दीनानाथ ओर रघुनाथग्रसाद को मस्तक में असफ- लता की टीका लगाकर शिवप्रसाद के पतन का समाचार सुनना ओर शाम की गड़ी से लौटना पड़ा उसमें उनकी वेदना और निराशा का सहज ही अनुमान किया जा सकता है। रेलगाड़ी के डब्बे में दोनों आदमी बेठे तो लगभग सारा -रास्ता मौनता ही में कट गया, प्रयाग स्टेशन पर उतरने के समय _ अलवत्ता दो-चार शब्दों का विनिमय हो सका | शिवप्रसाद को गेवाकर मानों आज वे सबस्व गेवा चके थे, इस नवयुवक का इतना अधिक मूल्य इन लोगों की आँखों में भी आज से पहले तही था। स्टेशन पर श्यामकिशोर, चपला, कमला सभी शिवग्रसाद सम्बन्धी ससाचार को जानने के लिए आये थे! लेकिन दीनानाथ ओर उनसे अधिक रघुनाथप्रसाद का रुख एेसा था कि उनके - कहे चिना ही सारी वात समने चालो की समक मे श्रा गयी। 2 ॥ भ




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