सुकवि - संकीर्तन | Sukavi Sankeertan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गईं । यहाँ तक कि दोनो विद्धान्‌ अंधों का पता জাল अहसन, अल्कार-शास्त्र इत्यादि ग्रंथ उन्होंने प्राप्त किए । इसके आतारक्त काश्मार से वह स्वय अनेक अल्भ्य अथ अपने साथ पहल ही ले आए थे | जब वह बद्रिकाश्नम की ओर देशादन को गए थे थे । जिन प्राचीन अंथों का पता पंडितजी ने लगाया, उनमें कितने ही म्ंथ १००० वर्ष से भी अधिक पुराने हैं ; साव-आठ सो... वर्ष के पुराने अंथ तो सेकड़ों डी हैं । ক উস ১৪৭ १८८४ ईसवी में, प्राचीन पुस्तकों के प्रकाशन के संबंध में, ` अकाशन के विषय में भी बात छिड़ी । फल यह हुआ ` अधिच्छारी जावजी-दादाजी के यहाँ गए, वहाँ तीनों व्यक्षियों की खला से (काव्यमालाः-नामक मासिक पुस्तक निकालना मिरिचत = इभा। यद १०० पृष्ठ की मासिक पुस्तक ३७ वर्ष से बराबर ` निकल रही हे । इसमे रेखे अपू श्राचीन प्रंथ छुपते हैं, जिनका ` देखना तो दूर रहा, नाम तक बहुलों ने न सुना था। 4 स प्रकार 'काव्यमाला' फे संपादन, अथो के संशोधन छोर ` साथ ही देश-पर्यटन च्म निकक्ञे, श्रार काश्मीर, पंजाब, बंगाल, राजपृताना, गुजरात, मभ्य-मरतत ओर तेग इत्यादि देशो मे बहत काल तक मण करके नाना अकार्‌ कं काव्य, नाटक, भाण, चपू , ¢ तब भी वरहो से कितने ही हस्त-लिखित अनुपम अंथ खोज लाए. पंडित दुर्गाप्रसाद बब गए । वहाँ डॉक्टर पिट्संन के स्थान पर. उनसे. शोर पंडित काशिनाथ-पांडुरंग परब से मेंद हुईं। . अनेक. विषयोः प्रर वातांलाप द्वोते-होते पुराने ग्रंथों के कि पंडित दुर्गाप्रसाद ओर काशिवाथ निरयसागर-छापेख़ाने के ` 1 जद एक. | ূ চা




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