सोहन काव्य - कथा मंजरी | Sohan Kvya Katha Manjari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पति हितकारी :
सन्नारी
दोहा :--वर्धभान भगवान का, गावो सब गुण गान |
ऋद्धि वृद्धिः हौवे सदा, पावे जगम मान। १॥
[ तजं--राधेश्याम रामायण |
राजगृह था -नगर श्रनुपम, श्रेणिक नुप था हितकारी ।
हेमवन्त . भूधर सम शोभा, पाता था वह गुणधारी।। १॥
महाराणी -पटनारी चेलणा, नव तत्वों की थी ज्ञाता।
रग रग में थी श्रद्धा जिनके वीर वचन ही লন মালা || ||
,, महाराजा थे बौद्ध मती और, क्षरिकक वाद था मत जिनका ।
क्षण-क्षण में होता परिवर्तेत, चेतन का और इस तन का ॥ ३ ॥।
.. जब भी. चर्चा होती धर्म की, महाराणी भी रस लेती ।
वीर वचन है सत्य जगत में, साफ-साफ वह कह देती ।। ४॥
दोहा :--श्रकाट्य वचनों को सुनी, होय निरुत्तर भूष । । ` ।
श्रागे पीछे सोच कर, हो जाता था चुप्प ॥ २॥
इक दिने भूपति कहे देखलो, नगर निवासी सभी सुखी ।
यह् प्रताप सब ही मेरा है, नहीं नजर में आय दुःखी | ५॥।
. महाराणी कहे जीव शुभाशुभ, कयि श्राप श्रपने पये।
नहीं किसी कोकोई भी यहां, सुखदुःख देने को भ्रये।।६॥
महाराज कहै राजनीति ही, सव को साता देती है।
प्रजा मोद से समय निकाले, सुख की सांसे लेती है। ও ॥।
दुःखी नजर में नहीं श्रा रहा, देखा हो तो वतलावो।
` सुखी करु गा उस मानव को, कहीं अगर तुम खुद पावों | ८ |।
दोहा :--श्रवश॒ करी पति के वचन, सोचे यों पटनार।
सुख दुःख भोगे निज किये, सुनो आप भरतार || ই ||
सुख दुःख देना नहीं हाथ में, प्राणनाथ मत বাললী 1
से-जैसे बाँधे कमें- वह, भोगे यह मन में लावो ।।९।।
ই
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