ब्रह्मचर्य - दर्शन | Bahma Charya Darshan  

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ঈসা ফির বে রায় धद स्वापे ५1 कम हो हुए पु गावैद है চাই बाप नह त 1.4 ইল টীম .> है বছর 2 देमि 11१0६ डा গলে हर है हुई प्न दपर १। उपक्रमं गीता में कहा गया है, कि जो साधक परमात्म-भाव « चाहता है, उसे ब्रह्मचयं-द्रत का पालन करना चाहिए। बिना इसके साधना नहों की जा सकतो है। क्योंकि विषयासक्त मनुष्य का मन जन्य भोगों के जंगल में हो भटकता रहता है, वह अन्दर को उ अन्तभुख मत ही बअह्यचर्य का साधक हो सकता है ! विषयोन्पुख बना रहता है 1 शक्ति का सूल জীন £ ब्रह्मचयं, जीवन की साधना है, अमरत्व की साधना है। है--अ्रह्मयर्य जोवन है, वासना मृत्यु है । ब्रह्मचर्य अमृत है, वासना अनन्त शान्ति है, अनुपम सुख है । बाध्षना अशांति एवं दुःख का ब्रह्मचर्य शुद्ध ज्योति है, वासना कालिमा । ब्रह्मवयं ज्ञान-विज्ञान है, अज्ञान । ब्रह्यययं अजेय शक्ति है, अनन्तं बल है, वासना जीवन की एवं नपु सकता । ग्रह्मचयं, शरीर की मूल शक्ति है 1५ जीवन का ओज है है 1 ब्रह्मदर्य सर्वप्रथम ध्वरीर को सशक्त बनाता ই | वह हमारे मे स्थिर बनाता है । हमारे जीवन को सहिप्णु एवं सक्षम बनाता है। ष साधना के लिए धरीर का सन्नमर एवं स्वस्थ होना आवश्यक है । चः शारीरिक क्षमता आध्यात्मिक साधना की पूर्व भूमिका है । जिस अपने आपको एकाग्र करने की, विचारों को स्थिर करने को तथा ' परीपहों को सहने की क्षमता नही है, मापत्तियो की संतप्त दुपहरी बढ़ने का साहस नहीं है, वह आत्मा की शुद्ध ज्योति का साक्षात्कार भारतीय सस्कृति का यह बद्ध आधोप रहा है कि--“जिस द्षरीर में নহী ই, তামরা नहों है, उसे आत्मा का दर्शन नहीं होता हैँ ॥”१ सबल आत्मा का नियास होता है । इसका तात्ययं इतता ही है कि में भी मेर के समान स्यिर रहने वाला सहिष्णु ब्यत्रित हो आत्मा वें पहचान सकता है । परन्तु कप्टों से इरकर प्रथ-भष्ट होने वाला मे दर्शन नहो कर सकता | अतः आत्म-्साधना के लिए सक्षम घरीर आवश्यक है । गौ बनाने के लिए द्रह्मचयं का परिपालन आवश्यक है । क्योकि मन ই. ফির ০ এর ০৯৬




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