अशोक आयुर्वेदरत्न गाइड खण्ड - 2 | Ashok Ayurved Ratna Gaid Khand-ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झयम पत्र-शालाक्य तन्त्र € उत्पन्न हुआ । वह जन्म से *जनक' आर विदेह से उत्पन्न होने के कारण 'वैंदेह,' मत्थन करके उत्पत्त होने के कारण मिथिल कहलाया श्रौर इसी ने मिथिला पुरी बसाई ।” इस प्रकार की पौराणिक गाथा को श्राधार मान कर हम नहीं कह सकते कि निमि कौन थे, क्योंकि इस प्रकार की कथाएं रूपक के श्राधार पर होती हैं जिन को समझ पाना प्रत्येक के वस की वात नहीं । इसी प्रकार का वर्णन धन्वन्तरि के विषय में ग्राता है, जहां समुद्र-मन्यन के द्वारा उनके उत्पन्न होने की कथा वर्णित की गई है । इतिहास का श्रवलोकन करें तो हमें पौराणिक राजवंकों की तालिका देखने को मिलती है श्रौर उसके भ्रनुसार महाराज निमि काश्ीराज दिवोदास पन्वन्तरि के बहुत पूर्व से सिद्ध होते हैं । उस वर्णन के श्राघार पर राजा निमि अयोध्या के राजा विकुक्षी झद्ाद के समकालीन थे । अयोध्या के राजाओं की वंश परम्परा पुराणों में विस्तार से दी हुई है । उसके वर्णन केश्ननुसार राजा विकुक्षी शशाद की सौलहवीं पीढ़ी में प्रसेनजित हुए जो काश्लीराज धन्वन्तरि के सम- कालीन थे । यदि झ्नुमान द्वारा यह कहा जाय कि प्रत्येक पीढ़ी के राजा ने लगभग वीस वर्ष राज किया होगा तो हम पाते हैं कि काक्षीराज घन्वन्तरि के लगभग ३२० वर्ष पूव॑ राजा निमि हुए । पाश्चात्य इतिहासकार सुश्रुत तन्त्र का समय मह'भारत काल के बहुत शुवें का मानते हूँ । महाभारत काल श्रधिकतर विद्वानों ने सहल्र वर्ष ईसा पूर्व का माना है | अत: यदि सुब्रत का समग्र दो सहुश्त्र वर्ष ईसा से पूर्व साना जाए तो धन्वन्तरि को दो सहन वर्ष ईवा से पूरे मानें तो निधि का समय तेइस सौ चर्ष पु्वे ईसा से माना जाएगा । अत: हम कहेंगे कि राजा निमि श्रादि शालाक्य तस्त्र के प्रणेता थे और उनका समय ईसा पर्व साढ़े तेईस सौ वर्ष माना जाना चाहिए जो कि सस्वस्तरि के समय से ३४५० वर्प पुर्व का होता हैं । प्रदन--'मुख' शब्द से श्राप कया समझते हैं ? मुख के उपांगों बी रचना का दिदाद चणन कौजिए | ः उत्तर--'मुख' शब्द से मुघगल्लर के सभी ग्रंथों का वोध री । आयु- बेंद में सात श्रव्यत्रों के समूह का नाम मुन्न है, वे सात ग्रवयव निम्न हैं--




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