श्री भद्रबाहु चरित्र | Shribhdrabahu Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ भद्रवाहु-चरित्र ।
आज आपके चरण-सरोजके दरोनते मै सनाथ हुआ ।
तथा आपके पधारनेसे मेरा रह पवित्र हआ । विमो!
मुझदासके ऊपर कृपाकर किसी योग्य कायेसे अनुग्रहीत
करिये। बाद सुनिराज मधुर बचनसे बोले-भद्गर ! यह
तुम्हारा पुत्र भद्रबाहु महाभाग्यशारी तथा समस्त विद्याका
जानने वाला होगा। इसलिये इसे पढ़ानेके लिये हमे
देदो । में बडे आदरसे इसे सब शास्त्र बहुत जल्दी पढा-
ऊंगा । मुनिगजके बचन सुनकर कान्ता सहित
सोमम बहुत प्रसन्न भा । फिर दोनो हाथ जोड कर
बोला-प्रभो | यह आपहीका पुत्र हे इसमें मुझे आप
क्या पूछते हैं। अनुग्रह कर इसे आप लेजाईये और सब
शाख पदाईैये । सोमशमेके कहनसे-मद्र बाहुको अपने
स्थान पर लिवाटेजाकर योगिराजने उसे व्याकरण,साहित्य
तथा न्याय प्रशुति सव शाख पटाये । यदपि भद्रबाहु
व्याचष्ट विहिताझललि! ॥ ७* ॥ सनाथो नाथ ! जातोऽ त्वत्पादाम्भोजवीक्षणात् ।
मामकं समभूुदथ पूतं गें त्वदागतेः ॥ ७१ ॥ विभो ! मयि कृपां कृत्वा कृद
किश््निरुप्यताम् । व्याजहार ततो योमी गिरा प्रस्पष्टमिष्टया ॥ ७२ ॥ भवदीया-
ऽऽत्मनो भद! भद्रबाहुसमाह्वयः । भविताऽयं महाभाग्यो विश्वव्रियाविश्चारदः ७३
ततमे दीयतामेषो ध्यापनाय সন্থাহ্যান্ | হাজাগা सकलान्येने पाठयामि
यथाऽचिरात् ।॥ ७४ ॥ गुरुग्याहारमाकण्यं बभाण स्रियो द्विजः । महानन्दथुमापश्नो
सुकुलीङ्घल्य सत्करौ ॥ ७५ ॥ यौसाकोऽगरं खतो देव॒} किमन्न परिप्च्छथते ।
पाठयन्तु कृपां कृतवा शाल्नाप्येनमनेकशः ॥ ५६ ॥ इति तद्वाक्यतो नीत्वा कुमारं
स्थानमात्मन; । शब्दस्तादिलयतकांदशान्नाण्यध्यापयदयराम् ॥ ५७० ॥ गुरूपदेशा-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...