सनाथ - अनाथ निर्णय | Sanath - Anath - Nirnay
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बालचन्द श्रीश्रीमाल - Balchand Shreeshreemal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९ सनांद-अनाथ निणय
সপ পর
ओर क्रोधी; निलभिी श्चौर लोभी छिपे नहीं रद्दते। चतुर
मनुष्य किसी को देखते ही जान लेता दे, कि यह कैसा है ।
किसी रानी मतुः का, अपनी राग वाली बस्तु--या जिस
पर राग 6, उस मन॒प्बन्का देख कर उसे अच्छा मानना स्वाभा-
विछ टू. लेकिन एस मनुप्य द्वारा अच्छा माने जाने के कारण,
था अन्न्छा माना गया व्यक्ति या पद्माथ वास्तव में अच्छा ही है,
यह नहीं कहा जा सकता | क्योकि चद् सग रखमेवाला, उस
पदाथ या व्यक्ति से राग होने के कारण ही उसे श्रच्छा मान रहा
टै, मे छि इसकी वास्तविक अच्छाड के कारण । उदादरण के
लिए सथ्यर विष्ठा को अच्छा मानता दे, लेकिन बिष्ठा अच्छी
वतु £. यह वान फट् स्वीकार ने करेगा । লুক को विष्ठा से
রি
गम £, सी कारण वद चिदा फो अच्छा मान হা 8 | वास्तव
में उसमें भत्तण करने योग्य अच्छार नहीं दें ।
गाज़ा श्रेगिक को यदि मुनि से राग होता और इस कारण
बरद्द मुनि के बग रूप का अच्छा मानता, तत्र तो वात ही दूसरी
थीं, लक्रिम राजा को इन मुनि से राग नहीं हैं। राजा श्रेशिक
ख्बय॑ भी खुल्दर था, और वखालंकार भी पहने हुए था, लेकिन
खन युनि के शर्रर पर कोई बम्नर শী হা होगा, या न रहा होगा।
ऐसा होते हुए भी राजा को थे मुनि श्राश्वयकारी सुन्दर प्रतीत हुए,
एमे प्रकट थे कि उन मुनि का स्वाभाविक रूप ही अनुपम था ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...