साहित्य - समीक्षा | Sahitya-samiksa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
वान्यो क रूप-रंग छुछ निराला डदै ! किसी साधारण गद्य खो
লালা छांदों में ठाक् देने उसे ही से काव्य का रूप नहीं प्राप्त हो
जायगा । अतः कविता की जो सरस और मधुर शब्दावली
ब्रज भाषा में चली आ रही हैं, उसका चहुत छुछ अंश खड़ी
बोली में रखना पड़ेगा। भाव बैलक्षण्य के संबंध में जो बातें
गद्य के प्रसंग में कही जा चुकी हैं, वे कविता के ,विषय में भी
ठीक घटती हैं। बिना भाव की कविता ही क्या? खड़ी बोली
की कविता के प्रचार के साथ कार्यषेत्र में जो अनधिकार-प्रवेश
की प्रवृत्ति अधिक हो रही है, वह ठीक नहीं। कविता का अभ्यास
आरम्भ करने के पहले अपनी भाषा के बहुत से नए पुराने.
छायो की शैली ज मनन करना, रीति-अन्धों का देखना, रस,
शल्ंकार आदि से परिचित होना आवश्यक है।
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