स्वामी रामतीर्थ | Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वर्ग का साम्राज्य, ११ हम देखते हैँ कि यदि कोई पूरो नाम दो सकता है तो चद 3० है। यह सब भाषाओं का प्रतिनिधि वा प्रदशक है। यह सम्पूर्ण विचार का प्रतिनिधि है।यह अखिल बिश्व का प्रतिनिधि है । सम्पूर्ण वेदान्त, वल्कि हिन्दुओं का सम्पूर्ण दर्शनशासत्र केवल इस अक्षर ४८ का विवरण है। हैँ” समग्र विश्व को ढके है । सारे संसार में एक भी कोई नियम, एक भी कोई शाक्ति, सारे जगत में एक भी कोई पदार्थ ऐसा नहीं हैं। एक पक करके तुम देखोगे किं भृतौ के सव लोक, सच जगत, अस्तित्व की सव अवस्थाय इस अच्तर उम्‌, ॐ से ढकी हर है । । ध्वनिर्यो -दो तरद की है, स्पष्ट (लिखने मै श्रा सकने वाली ) और अस्पष्ट (लिखी न ज सकने वाली ) | हम उन्हें ध्वन्यात्मक ओर वर्णत्मक कहते हैं । ये संस्कत के नाम अर्थौ से भरे हुए है । वणौत्मक के शाब्दिक अर्थ हैं “वे ध्वनियां जो लिखी जासकती हैं” । ध्वन्यात्मक के अथै है चे “ध्वनिर्यो जो लिखी नदी जा सकतीं ह 1৮ सचै साधारण भाप! चरणात्मक ड । वेदना (भावना) की भाषा ध्वन्यात्मक है। वह शब्दों में लिखी या अक्षरों से प्रगट वहीं की जा सकती | पक मनुष्य हँसखता है ।क्या किसी लिखित भाषा में आप उसे प्रगट कर सकते है ? क्या आप उसे कागज्ञ पर अंकित कर सकते है ? पक मचुष्य रोता है । आप उसे कागज पर नहीं स्फुटः कर सकते । ये ध्वन्यात्मक हैं । -दम देखते है कि ध्वन्यात्मक ध्वनिर्यो, यां स्वाभाविकः ध्वन्यात्मक भाषा पक उद्देश्य विशेष रखती दे जो चर्यात्मक से नहीं (सिद्ध होता । मान लो कि आप कुछ लोग विदेश जाते हैं, या एक विदेशी आपके देश में आता है, वह आप की भापा वोल या समझ




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