आधुनिक हिन्दी साहित्य की विचारधारा पर पाश्चात्य प्रभाव | Aadhunik Hindi Sahitya Ki Vichardhara Par Pashchatay Prabhav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
438
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पूर्वी राज्यो की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया । भत पोचछु गाल की शक्ति क्षीणतर
होती गयी । डच शासको ने पूव म लका व मनक्का के राञ्य पाचु गालिया से छीन
लिप ) उहनि बभाल कोरोषडल षै तट व मलायार केतट क भागी वो मी दोचु
गालियों से छीन कर प्पने हस्तगठ कर लिया | झत मे अश्नेजों ने सूरत, बंगाल,
बरोमडल के तट व मलाबार के तट पर पोचु गालियो से झनक युद्ध लड जिनमे
पोचु गीज पराजित हुए त्तथा भारत मं उनका अधिवार क्षेत्र झत्यप्रिक सीमित हो गया।
यद्यपि ग्रोप्रा, ड'मन, डयू जिसक! क्षेत्र कुछ ही वममीत है -- मपोदगोज शासन
भारतीय स्वतत्रता के बुछ काल चांद तक बना रहा कि नु, इस स्थिति मे बढ़
मारतोय सम्यता व सस्कृति कौ प्रभावित करने मे समथ नहीं हो सका |
प्रभाव
भ्रारम्भ मे पोच मालियो का मारतीय जोवन पर विशप प्रमाव पडा । लगमगं
१२० चप तक अकेली पो७ गोज जाति हो भारत म॑ योरुप की प्रतिनिधि थी । पोचछ
गालियो ने भारतीय स्त्रिया से विवाह सम्ब ध भो जांढ । मारत म पोछु गात्रिपी के
सभ्पक से एक नवीन जाति का ही उद्भव हुआ्रा जिसबी यूरेशियन सम्प्रदाय प्
गणना की गयी । पोचु गीज भाषा वा भारत म॑ व्यापक प्रसार हुआ था जब इष,
फ्रासिसी व अग्रेज मारत म॑ प्राये तो उ्हे भ्रपना वात समभने व समभाने के लिये
शुर् मे पोचुमीज भाषा का ही आश्रय लता पड़ा । पोछुगीज भाषा का
प्रधिक्रश भारतीय नौकरो व “मापारियों में प्रसार हुआ था । मारत मे
बोली जाली जाने वालो पोचु गानो भी शुद्ध रूप मे नहीं रही तथा उसमे
देशी भाषाश्ना के वहुत से शब्द प्रवेश कर गये थे । इसी प्रकार भारतीय मापाश्नो
में भी पोचु गोज भाषा के सकडः शब्द प्रवेश पा गये । हिटी मे अझनंक पोछु गीज शब्द
इप्त भकार धुल मिल गये हैं कि রর भ्रलग करना कठित है । # आधुनिक योख्पीय
भाषाओं मे श्रग्रेजी के वार पोचु गालीज माषा के ही हिद्दी म॑ सर्वाधिक प्रागत
शब्द हैं एव फ्रेंच जमन डेनिण श्रादि के नगष्य है ) पोचु ग्रालियों की दूसरी
भहत्वपूरा दन प्रेस है । भारत मे सद प्रथम पाु गालियो ने गांग्र। म प्रप आरम्भ
किया ।
डघो का श्रागमन
स्पेन के ' अजय बेडे ' वो पराजय ने आय योस्वीय जातिया का भी पूर्वी देशा
से “यापारिक सप्दघ स्थापित करत के लिए भ्ररित क्या] हालण्ड का ध्यान ब्यापा
रिकं कम्पनी की स्यापनाको श्रार गया तया मूर मे डच इष्ट इ टिया कम्पनी
(खद् १६१६} की स्थापना वी गयो । भारत मे डच व्यापार की दृष्टि से झाये थ।
पोछु पायो कौ तरह ईसाई घम भ्र प्रचार उनका सम्य नही था 1 श्रप्रज, जोस्वय
भारत मे व्यापार की दृष्टि से श्राये स्थानीय लोगों हो डच व्यापारिया का विरोध करन
देजिए घीरेद्र वर्मा गहस्यों सापा का इतिहास” पृष्ठ ७४
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