शतरंज के खिलाडी | Shatranj Ke Khiladi

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Shatranj Ke Khiladi by हरिकृष्णा - Harikrishna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ध शतरंज के खिलाड़ी दूसरा पहुला सैनिक--लड़ाई भी तो प्रकृति के इशारे पर ही होती है । इसान के झन्तस्तल में जीवन के बीज हूं । वह पैदा करता है । एक से दो--दो से चार और इसी तरह हजारों--लाखों--करोड़ो इसान बन जाते हैं लेकिन इसान के ही हृदय में मृत्यु के भी बीज है । वह पैदा भी करता है--वह मारता भी है । मारना ज़रूरी भी है नहीं तो मनुष्य- संख्या असंख्य हो जाय । दुसरा सेनिक--हो जाय तो हो जाने दो । इस दुनिया में झ्भी बहुत धरती हैं । पहुला सैनिक--लेकिन इस धरती के स्तनों में इतना दूध नहीं है कि श्रपनें श्रसख्य बच्चों को दूध पिला सके । इतने लोगों को खिलाने के लिए शझ्रन्न कहाँ से लाझोगे शभ्ररब रेगिस्तान है--वहाँ बड़ी कठिनाई से कुछ पेट में डालने योग्य वस्तुएँ उत्पन्न होतीं हैं--वहाँ की थोडी-सी मनुष्य-सख्या की भी भूख उससे नहीं भरती--+तब उसे भ्रन्न की तलाश में ब्रागें बढना पड़ा--वह ईरान में घुसा--वहाँ से अफ़ग़रानिस्तान मे प्राया--वहाँ से हिन्दुस्तान में आ पहुँचा । दूसरा सेचिक--हः ह तुम समझते हो कि सुसलमान भोजन की तलाद में श्रंपने देश के बाहर बढ़ें । पहला सेनिक---नहीं तो क्यीं ? दूसरा सेनिक--इस्लाम को संसार का धर्म बनाने की भ्रभिलाषा से । पहुला सेनिक--भूठ--बिलकुल भूठ । इंसान की पहली जरूरत हैदरीर की भूख-प्यास श्रौर रीर का सुख । वह पहले उसी की पुर्ति करता हैं । अरब में उसकी पूर्ति नहीं हुई इसीलिए उसने धर्म का बहाना बनाकर सांसारिक सुखों की पूर्ति के लिए शभ्रागे बढना शूरू किया । इसों समय एक युवती सर पर भरा हुभा घड़ा लिये हुए प्रवेश करती है । दूसरा सेनिक--ऐ जन्नत की हुर की तरह तुम कौन हो ? क्या खुदा




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