अरथी | Arathi

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Arathi by श्री कान्त - Shri Kant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरथी / 17 मालाओं से ढक गया | बाहर आकर अरथी क्षण-भर को रुकी, फिर उत्तर की ओर मुंह कर चल पड़ी । ए्मशान उसी ओर था--द्र है, कम-से-कम तीन मील है । पहुंचते-पहुंचते बारह वज जाएंगे । .. - जैसे ही अरथी रवाना हुई, घर की स्त्रियों ने इकट्ठे रोचा शुरू किया और मदनलाल की विघवा पछाड़ खा-खाकर गिरने लगी । ~ ..चलो, चलो, आगे चलो । अब यहां और रुकना ठीक नहीं । अरथी चल पड़ी थी। सबके साथ-साथ मैं भी चल पड़ा था। अच्छा ही किया जो नंगे पांव आया । ज्यादातर लोग नंगे पांव आये हैं। बाबु लोगों की बात और है। मगर हैं कितने बाबू ! ह कुछ भंगी और शोहदे भी शामिल हो गये थे--पैसे के लोभ से। अरथी के आगे-आगे पैसे लुटाये जा रहे थे, जिन्हें वे दौड़-दौड़कर चुनते । भीड़ के पेरों कुचले बिना, पैसे चुनना भी कारीगरी है--वह भी ऐसी फूर्ती के साथ । अभी हम सौ गज्ञ ही गये थे कि कलरव हुआ। शायद जय-जयकार हो रही है। किसी के विछड़ने पर जब जय-जयकार होती है, कीतिगान होता. है तो मेरी. आंखों से . अविरल अश्र- बहने लगते हैं---चाहे वह कोई हो ।.पता नहीं क्‍यों. ? - । मै जल्दी-जल्दी चल. नहीं पाता ओर वे लोग. तेज-तेज चल रहे थे-- भागे जा रहे थे।. मैं पीछे न रह जाऊं।-मैंने भी अपनी, चाल तेज की। अचानक-मुझे सुनाई पड़ा, .“मदनलाल*:*। और मेरे मुंह से भरपूर कंठः निकला, 'अमर है । सब..लोगों ने मुड़कर हैरत से.मुभे. देखा । ओह ! मुझसे गलती हो गई | मदनलाल का नाम जझाग्रद नहीं लिया गया था। __ अब्‌ उस खड़ाऊं वाले ने,.जो भीड़ में था, .अपनी चाल' घीमी कर दी ताकि मैं उसके -साथ हो. लूं । .जब मैं: उसके बिलकुल साथ. हो गया, तब उसने मुभे घरकर देखा) उसके-चेहरे पर तेज. था.। वह अपना शरीर बनाये हुए था। ৩. বিন :5+- कौन अमर :है 22 उसने गुस्से. में < भरकर कहा, “जो आएगा सो ' जाएगा.। तुम क्या समझते हो, ,अमृत:पीकर जाये, हो ?... ... .. वह मुझको जिस तरह खटखटा रहा था, उससे लगता था, वह जानना




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