अरथी | Arathi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अरथी / 17
मालाओं से ढक गया | बाहर आकर अरथी क्षण-भर को रुकी, फिर उत्तर
की ओर मुंह कर चल पड़ी । ए्मशान उसी ओर था--द्र है, कम-से-कम
तीन मील है । पहुंचते-पहुंचते बारह वज जाएंगे ।
.. - जैसे ही अरथी रवाना हुई, घर की स्त्रियों ने इकट्ठे रोचा शुरू किया
और मदनलाल की विघवा पछाड़ खा-खाकर गिरने लगी ।
~ ..चलो, चलो, आगे चलो । अब यहां और रुकना ठीक नहीं । अरथी
चल पड़ी थी। सबके साथ-साथ मैं भी चल पड़ा था। अच्छा ही किया जो
नंगे पांव आया । ज्यादातर लोग नंगे पांव आये हैं। बाबु लोगों की बात
और है। मगर हैं कितने बाबू ! ह
कुछ भंगी और शोहदे भी शामिल हो गये थे--पैसे के लोभ से।
अरथी के आगे-आगे पैसे लुटाये जा रहे थे, जिन्हें वे दौड़-दौड़कर चुनते ।
भीड़ के पेरों कुचले बिना, पैसे चुनना भी कारीगरी है--वह भी ऐसी
फूर्ती के साथ ।
अभी हम सौ गज्ञ ही गये थे कि कलरव हुआ। शायद जय-जयकार
हो रही है। किसी के विछड़ने पर जब जय-जयकार होती है, कीतिगान
होता. है तो मेरी. आंखों से . अविरल अश्र- बहने लगते हैं---चाहे वह कोई
हो ।.पता नहीं क्यों. ? - ।
मै जल्दी-जल्दी चल. नहीं पाता ओर वे लोग. तेज-तेज चल रहे थे--
भागे जा रहे थे।. मैं पीछे न रह जाऊं।-मैंने भी अपनी, चाल तेज की।
अचानक-मुझे सुनाई पड़ा, .“मदनलाल*:*। और मेरे मुंह से भरपूर कंठः
निकला, 'अमर है । सब..लोगों ने मुड़कर हैरत से.मुभे. देखा । ओह !
मुझसे गलती हो गई | मदनलाल का नाम जझाग्रद नहीं लिया गया था। __
अब् उस खड़ाऊं वाले ने,.जो भीड़ में था, .अपनी चाल' घीमी कर दी
ताकि मैं उसके -साथ हो. लूं । .जब मैं: उसके बिलकुल साथ. हो गया, तब
उसने मुभे घरकर देखा) उसके-चेहरे पर तेज. था.। वह अपना शरीर
बनाये हुए था। ৩. বিন
:5+- कौन अमर :है 22 उसने गुस्से. में < भरकर कहा, “जो आएगा सो
' जाएगा.। तुम क्या समझते हो, ,अमृत:पीकर जाये, हो ?... ... ..
वह मुझको जिस तरह खटखटा रहा था, उससे लगता था, वह जानना
User Reviews
No Reviews | Add Yours...