आत्मदर्शन | Aatmadarshana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रात्मदशन १५ साहेत ) बिता किखी शत के दे दा । सभान अक्टूबर १६११ মহন্ত टन का निश्चय क्रिया था ओर साथ ही यहदद भी निश्वय हुआ था कि दो मास के पश्चात्‌ द्वानेयाला गु० कु० का अगला उत्लव भी वृन्दावन किया जाय | इतन थोाड समयम सारी इमारतों का बन जाना ओर नई गुरुकुल भूमि में उत्सव का होना केवल इसी लिए सम्भव हो सका कि मद्दात्माजी तीन मासकी छुट्टी खकर वहां पहुंच गये ओर रात दिन परिश्रम करके डस कार्य को पूरा किया | परन्तु शुरुकुल आन के पश्चात्‌ मुख्याधिष्ठाता पदका बोर भी आपक कन्धो पर दही रफ़खा गया कयोंके स्वर्गीय प० भगवानदीन जी जो उल् सप्रय मुख्याधिष्ठाता थ, बीमार दाने के कारण चलन गपु । ध्रापने सरकारी नोकरी से छुट्टो ले ल्ली, परन्तु दुही समाप्त हाने पर यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि आए नोकरी पर जाये या गुरुकुल का काम करे। आपकी पेशन होने मं कवल्त एक वर्ष की कमी थी, लोगों ने यडढा ज्ञोर देकर आपका सलाह दी कि डाक्टर से साटी- फिकर (11921) (0110686) दिल्लाक्रर पेन्शनका अधि- कार प्राप्त कर लीजिए । परन्तु आपन भ्ूठा सार्टीफ फट प्राप्त करन से इन्कार किया, ओर एसे खमय में ज़ब कि आप भी पेन्‍न्शन के लिए केवक्ञष एक वर्ष की कमी थी, आपने नोकरी से इस्तीफा दे दिया। यद घटनादे ज्ञो आपके 'स्वाथे त्याग” और “सत्य निष्ठ” का परिचय देती हे ओर बतलाती हे कि उनके दर कितना चारिव्यबल हें । गुरुकुल बृन्‍्दाबन जो इस समय ছলনা তল্নন अवस्था में हे यद आपके ही पुरुषाथ का फल्न हं | जिल समय आपने गुरकुल का चाज किया बही शोचनीय दशा थी किन्तु




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