सौंदर्य शास्त्र | Saundraya Shastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ हरद्वारी लाल शर्मा - Dr. Hardwari Lal Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
५
सन्द 4-शास्त्र
जितना सम्बन्ध है, इसने अधिक उसका सम्बन्ध आनन्द”! अथवा श्सःकी
अनुभूति से है। सुन्दर वस्तु आनन्दग्रद होने के कारण हमारी चतन सत्ता का
अंश हे। हम उस वस्तु को उसके आध्यात्मिक प्रभाव से লাস্তুঘ লঙ্কা कर
सकते | हम सुन्दर वस्तु का प्राकृतिक पदा्ध--पानी और हवा--की भाँति अध्ययन
नहीं करते । पानी इसलिये पानी है, क्योंकि विश्लेपण द्वारा हम जानते हैं कि यह
हाइड्रोजन और ओपजन के विशेप संयोग ते बना है। परन्तु सुन्दर वम्तु केवल
अपने आकार और रचना के कारण ही नहीं, वरन् इसलिए, भी सुन्दर हे किं
इसका अनुभव आनन्द की अनुभूति उत्पन्न करता है । प्रत्येकं रचना के मोन्दर्य
की अन्तिम परीक्षा हमारी अनुभूति के द्वारा ही होती हैं। सौन्दर्य के इस
आध्यात्मिक स्वरूप की परीक्षा सौन्दर्य-शासत्र ओर इसके प्राकृतिक स्वभाव की
বাঈ'হ্ঘা सौन्दर्4-विज्ञान का काम है |
प्रस्तुत निबन्ध ল হাভীগ ইপ্রি-জীহ্য জী प्रधानता हे, परन्तु हमने वेज्ञा-
निक भिचार-शेली को भी उचित स्थान दिया ই।
सौन्दर्य के विपय में कुछ दाशशनिक समस्याएँ भी हैं। सौनल्ठर्य की ओर
हमारी स्वाभाविक रुचि क्यों है ? सौन्दर्य से हमारा क्या सम्बन्ध है? क्या सम्पूर्ण
स॒ष्टि की रचना सौन्दर्य के सिद्धान्तों के अनुसार किसी दिव्य आनन्द की अ्रभि-
व्याक्ते के लिये हुई हैं ? क्या वहत हुए. खोत, खिलते हुए. पुष्प, लद्दरात हुए
चन, शालि-क्षेत्र, समुद्र और तारिकाओं वाला आकाश, ये सब चेतन मन्ता के मृन्तं-
रूप हैं ? किन मूल-भावनाओं की प्रेरणा से मनुष्य अपनी आनन्द-अनुभतियों
को मूत्त करना चाहता है ? हमारे सम्पूण अनुभव मे आनन्द! का क्या स्थान
हू ? इत्यादि प्रश्न सोन्दय के दाशंनिक स्वरूप को स्पष्ट करने के लिये हैं | यद्यपि
इन प्रश्नों का पूर्ण उत्तर हमारे प्रस्तुत ज्षेत्र से बाहर है, तथापि अपने विपय का
स्पष्ट विवंचन इनके बिना सम्भव नहां है। इसलिय सॉन्दय-डशन हमारी शास्त्रीय
विवेचना की मूल-भीत्ति की भाँति हमारे सम्पूण अन्य में विद्यमान |
( ५ )
सोन्दर्य-शास्त्र के क्षेत्र और विस्तार को स्पष्ट करमे के लिये हमें हमकी
मुख्य समस्याओं को समझना चाहिये |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...