सोना माटी | Sona Maati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
463
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सोनामाटी / १७
देने वाली ठंडक, क्या गर्मी की आग और क्या वर्षा की बोछार, अपने खेत में काम
करते या बगीचे में गाय के लिए घास गढ़ते या वहीं अपनी छोटी-सी झोंपड़ी में
लेटे-लेटे कवितायें, अपनी बनाई कवितायें अकेले उच्च स्वर में गाते रहते हैं ।
रामरूप ने कुछ कवितायें लिख मंगाईं। वे एक कागज पर पेंसिल से ट्टे-फूटे बर्णों
में लिखी थीं। उन्हें देख उसने सोचा, इन कविताओं की तुलना में नयनाभिराम
सज्जा में प्रकाशित और ऊंचे दाम पर प्राप्त अनेक बहुप्रचारित काव्य क्ृतियां
ऊंची दुकान के फीके पकवान से अधिक महत्त्व नहीं रखतीं ।
आशएचये था कि कठिनाई से अक्षर सीखकर सकल छोड़ देने वाला और
जीवन भर पेड़-पौधों की संगति में रहने वाला व्यक्ति कुछ सामान्य उपमा-
उत्प्रेज्षाओों की कलाबाजी के साथ भावों के सागर में इस तरह गोते लगाता है।
एक लड़के ने बताया कि वे अपनी कविताएं पेड़ों को, फूलों को, चिड़ियों को और
आसमान के तारों को सुनाया करते हैं। आदमी उनकी कवितायें कम सुन पाते हैं
पर जब कभी कानों में उनके स्वर उतरते हैं तो फड़का देते हैं। रामरूप सोचता
है, कविता लिखना क्या स्कूल में सीखा जा सकता है? उसकी शिक्षा तो प्रकृति
से प्राप्त होती है। उसके लिए कागज-कलम ओर स्याही भी आवश्यक नहीं ) खुले
हृदय-पट पर प्रभात की कोमल किरणें विहग-शावकों के अनमोल बोल लिख
जाती हैं। झिलमिल तारिकाओं की मोन-माधुरी में सहस्नर-सहस्न भाव-गीत गुंफित
होकर विजन-वीणा पर झंकृत होते रहते हैं। पवन के इशारे पर धान की क्यारी
सर-सर कर काव्य-पाठ करती है। अमराई से मर्म र-ध्वनि निकली है। इसमें क्या
अनूठा काव्य-स्वाद नहीं है ? यह मुल स्वाद छापे की पोधियों में कहाँ ? फिर आज
तो और हालत खस्ता है। कविता को मृत घोषित कर दिया गया। पुस्तकों में
कला कौ ऊची-ऊंची बातों कौ बहस का प्रयोग भरा है । दुनिया को जनाने भर
बाजार बनाने की बातें हैं। रस छलककर बहता नहीं। उपयोग के लिए विरस
को इन किताबों की शीशियों में वादों के मजबुत कारक लगाकर बन्द कर रखा
जाता है । दिल सहज भाव से दिख नहीं जाता बहिकि उसे फाड-फाडकर दिखाया
আলা ই। पुराने संस्कारों का अभ्यासी रामरूप चक्कर मे पड़ जाता है ।
खोराका असली नामतो बहुत सुन्दर है, रामधीरज, परन्तु उसमें लगा
उपनाम खोरा' काफी दिनों तक रामरूप को अटपटा लगता रहा । बाद में उसे
लगा कि वास्तव में यह नाम स्वयं मे उनके प्रति उठने वाले प्रश्नों का समाधान
है। इसमें 'चतुरानन की चूक' की झलक ই। खोरा जी अपंग हैं। कठिनाई से चल-
फिर पाते हैं। अपनी एक कविता में खोरा शब्द के रहस्य का भी उद्घाटन किया
है। गांव की भाषा में खोरा का अर्थ है वह बड़ा कटोरा (खास तौर से पीतल या
फूल का ) जिसकी पेंदी में गोड़ा नहीं होता है। उन्होंने लिखा कि चूंकि मेरे पैर
नहीं हैं अतः मेरा नाम 'खोरा' है।
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