कशायपाहुड सूत्र | Kashaya Pahud Sutra

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Kashaya Pahud Sutra by धर्म दिवाकर - Dharm Divakarसुमेरुचंद्र दिवाकर - Sumeru Chandra Diwakar

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सुमेरुचंद्र दिवाकर - Sumeru Chandra Diwakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) तथा जामे जहां पर दि. जैन भाई और दि. जिनसन्दिर विद्यमान है, तरह पर प्रत्येक भन्थकी एक एक प्रति पहुंचे, ऐसी योजना की गई । संस्थाके सभी खदस्योकतो मी एक एक प्रति विना मूल्य दी जाती है । समाजे लिन श्रीसारनोंका संस्थाकी स्थापना ओर विकाससे हमे आर्थिक सहयोग प्राप्त है और जिनके कारण संस्थाके द्वारा महान कार्य हो रहे हैं, तथा जो आचाये सहाराजको अमूते आज्ञाकों साकार एवं कार्योन्चित करनेमे श्रधान कारण हैं ऐसे उन सभी श्रीमानों और उदारतापूर्बक प्रन्थोकी छपाई आदिमे आर्थिक सद्दायता पहुंचानेवाले दातारोंको उनके धर्म-मेसके लिये हारदिक धन्यवाद ই। आशा है कि समाजके अन्य दानी धर्मे-प्रेमी महानुभाव इस परम पवित्र विश्व-पावनी जिनवाणीके प्रसारके महत्त्वपूर्ण कार्यके लिए सक्रिय सहयोग देकर और अपनी उदाणता प्रकट कर महान पुण्यका खचय करेंगे, ताकि संस्थाका कार्य उत्तरोत्तर बृद्धिंगत होता रहे । सज च्नाचार्यश्री हमारे खामने नही है, तथापि उनकी पचित्र आज्ञाको शिरोघायें कर हम जितना कार्य उनके सम्मुख कर सके थे, उससे उन्होंने परम सनन्‍्तोषका अनुभव सल्लेखनाकालमे किया था ओर उनकी ही आज्ञा और इच्छाके अज्लुसार हम भगवान्‌ शुणघर आचाये विरचित कपायपाहुड सूत्रों को हिन्दी अनुबादके साथ मूलरूपसे पाठकों के कर-कमलॉमे स्वाध्यायाथं सेट करते हूए परम हर्षा अलुभव कर रदे है । आचायेश्री प्रशान्तचिन्त, प्रगाढ तपस्वी, जिनधमे-प्रभावक, श्रेयोमागें-प्रवतेक, बालबत्रद्यचारी और जगदुदहितैषी ये । उनके हणा इख परमागमरूपिणी भगवती जिनवाणो माताके अन्धरूप द्रव्यशरीरका जीर्णोद्धार और प्रसाररूप महान्‌ कार्य हुआ है। ऐसे महान्‌ आचायके भ्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेकी किंचिद्पि शक्ति समाजके लिए किसी भी शब्द या अर्थमें नहीं है। सच्ची रृतज्ञता तो उनके उपदेश और आदेशके अनुखार घर्ममे अगाढ अद्धा, चरित्रमें अचल निष्ठा, स्वाध्याय ओर आत्म-चिन्तनमे प्रवृत्ति तथा तदनुकूल आचरणख-ह्वारा ही व्यक्त की जा सकती है। स्वर्सीय परम श्रद्धेय भाचार्यश्रीके चिना इख महान्‌ कायेका




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