जैन साहित्य संशोधक खंड 2 अंक 1 | Jain Sahitya Sanshodhak Khand-2 Ank 1

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Jain Sahitya Sanshodhak Khand-2 Ank 1 by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंक १ 1] बोगद्शन [११ शैनशासमें योगपर यहा तक भार दिया यथा है (क ष्ठ ता वेन मुमुभु को লা মধিননক্ট धिवाय दण्द कापमिं प्रमृति केकी समवि हौ न देता, जीर मनिवायं स्पते प्रवृ कर्मी आरन्यक हो तो षर निवूिमम प्रयूत्ति करनेक्रो बहता है | इसी नियृत्तिमय प्रवृत्तिका नाम उसमें अध्ययचनमाता]1 है। भाषुजीयनकी दैनिक और বাসিক্ক হরি तीसरे गइुर्के सिवाय अत्य तीनों प्रदरामें मुस्यतया स्वाध्याय और ध्यान करनेको दी कहा गण रै2। यर पाल পুল্নী ল শ্বাইিয কি অনজামমানি योगअथमे प्रधानतया प्यानशब्द प्रयुक्त है। एपनके भण, मेन प्रभेद, आरम्बन आदिद विस्तृत बणन अनेक जेस आगमोमें ऐ1 आगमऊ बाद नियुक्तिका मगर है 4 1 2समें भी भागमगः स्यात्का हौ स्ठीकरण र । यावक उमास्दाति इत तत्त्याथयूप्रमें! मी प्यानया बर्णन है, पर उसमें आगम और नियुतिकी अपेक्षा वाइ अधित बात नहीं है | जिनमद्रगणी क्षमाभमणका ध्यानरतक्क आगमादि उत्त प्रयोमें बरार्णित ध्यानफा स्पष्टीकरण मात्र हैं। यहा तकके यागतिपमक जैन विचारोंमे थरागमोक्त यर्णनवी “री ही प्रधान रही है | पर इस गैगरकी श्रीमान्‌ एस्मिःसूर्नि एकदम यदल्कर सतारिन पारिस्पाति ये शोषरुवीके अउुसार नत्रीय परणिमाष्रा दे कर और বখলপী্া अपूरसी बनाकर जैन याग-साहत्यम नया पुग उषित किया । इसके सबूतमे उपके यनाय॑ हुए योगविस्दु, योगदर्शसमुद्य, योगविंटिका, यागशतका, पोट 'क ये श्र प प्रनिद है। इन ए्रयो्मे होने छिर्फ न-मागनुसार यागका पणन करके ही सतोष नहीं साना ऐ, किन्तु पातजल येगसूतमें पर्णित योगप्रक्रिया और उसकी खास परिमायाआवे साथ जैन सकेतोका मिलान भी क्या 8 । योगदशिम्यधयमें বাণ? আর इृश्पोंफा9 जो वणन है थह भारे योगसाहियमें एक नवीन टिया है। ह इस्मिद्रसूरियें योगारिपयक प्रथ उनकी योगाभिरावि और योगविधयत' ब्यापक युदित प्व नमुन हैं । इसके बाद भीमाद्‌ इसचद्रयूरिश्त यागशाब्बका सथर आता है । उप्में पात श्र योगभारूद निर्रिए आठ गौगागोंफे क्रमप साधु और णशरप लीवनकी आचार प्रक्रियाफा जैन सैटीये अनुसार पणन है, मिस आसन गधा ) दो उत्तराष्पन अ ४। এ टिपएरस बउरा माए, युश्गा मिक्णु उिमक्ूपणों | तआ उत्तरगुणे छुआ, दिणभाग॑सु चठुसु वि ॥११॥ पलम पारितसि भन्‍्शाय, विद शाय सझिआपह्। हाआए गोभरकाए, पुण्णा चर्ठायए सप्ाप ॥२२॥ रासि वि छठगे भाएं, मिक्‍्लु कुश्य गिभक्गयों | तथा उन्तरगुणे मुशा, गश्मागसु चर वि ॥ १ ७॥ पलम पारिति सभ्सायं, विरभ प्राण शि-रापर। हश्माएं नित्मोक्ग 8, चर्डा पए मुम्ये वि सम्शाय ॥ १८ ॥--उत्तराष्पपन अ७ | 3 देखो रधानाइग अ* ४ उदृश + | भमवापराष्म भन ४} भगदती शतक २ “पद ७ 1 ४1 गम्ययन भे ३ गा १०। ३ दसा आगरररनियुति कायोरूय अध्ययन या १४ ০০৯৫1 $देशी भ * धू६ २७ # आगे। € दखो हारिमटीप जायश्यक হানি प्रतिक्रमणप्पपन प्र ६८१ 7 झा प्राण के प्रयाशरिमि उत्लित ऐ ,ए० ११३ । 6 सशधिरिव एबाए स्वशातो&शिधीया। सम्परुपड़शब्पण यृस्यपशनास्तण ॥ ४१८ 1 अजपशत एपोडपि शमापिंगाया परे । निरढाशेदवृशादितसपम्धानुपेपत ॥ ४२९ ॥ इस, गाजीएु । ৭ মিশা লাহ रस्य निदि थिरा कान्ता भमा श्य | माणाति योधएनां लधज थ विशेष1त॥ १३ 1 इन भ्राड टृट्टिरेंगा सयूप ভোলা আর বিয়া शागविशमुओड शिई देश शास्य है। इसी বি सपर यपेरितयदीने २१, २२ २३, २४ ये चार द्वार्जिटिडायें सी हैं | साप ही डराने धसहस ने जान मेगा दिजवय পাত চিনক্ষা समर भी शूजयती स्वापम बनाई है ।




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